तरस रहीं हैं आंखे आपकी एक झलक पाने को
हां, विवश होंगे आप भी अपनी मरियादाओ से
पर ये सामाजिक ढपोसले आपको किस कदर उकसाती हैं?
सच बताना पापा, क्या आपको मेरी याद नहीं आती है?
अपनी उंगली पकड़ाकर चलना मुझे आपने ही तो सिखाया था
सही रास्ते में भी रुकावटें आएंगी, पर तुम्हें संभलकर फिर से चलना है , ये आपने ही समझाया था
यकीन था मुझे, कि इन सामाजिक बंदिशों से कहीं ज़ादा ज़रूरी , आपके लिए मेरी आज़ादी है
पर माहौल तो यहां कुछ और ही बताती है
सच बताना पापा , क्या आपको मेरी याद नहीं आती है?
सॉवन भर देता है नदियों को जल से
पर नदी तो हर पल समुंदर की ओर ही जाती है
वृक्ष अपने आंचल में जन्म देता है, नन्हे फल को
परिपक्वता के बाद उसे किस छोर में गिरना है
ये तो उसकी नियती बताती है
समुंदर को पाकर, नदी सावन के उन छींटों को भूल नहीं जाती है
पर आप कहो पापा , क्या आपको मेरी याद नहीं आती है?
मां के हाथों की रोटियों पर, मेरा भी है अधिकार
भूले नहीं भुलाता मुझसे मेरे भाई बहनों का प्यार
उन्हें तो चुप करवा ही दिया है आपकी डांट ने
पर आप भी हैं वाक़िफ, कि उन्हें मेरी याद हर रोज़ रुलाती है
अरे छोरो उनकी आप अपनी कहो
क्या आपको मेरी ज़रा भी याद नहीं आती है?
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