उसके जाने पर नसे फटेंगी
पर फिर भी जिंदा रहोगे तुम..-
इतने बरसों की जुदाई है कि अब तुमको देखेंगे तो मर जायेंगे ।
ये मौत भी कैसी अजीब है ना, यहाँ हर कोई जी रहा है एक दिन मरने के लिए... या फिर कहूँ कि हर कोई रोज़ मर रहा है एक दिन जीने के लिए ।
जिंदगी के इतने बरस तड़पने, सिसकने, और इंतज़ार में गुज़ारने के बाद अब ऐसे मोड़ पर हूँ जहाँ आ कर हर ख्वाहिश, हर उम्मीद ने दम तोड़ दिया है। अब तुम्हारा इंतज़ार भी नही, अब खुद को संभालने की कोशिश भी नहीं
दिखावे की चादर ओढ़ कर काफी दिन गुजार लिए... अब सच और झूठ के बीच का अंतर पता रहने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता बरसों बीते तुम्हें याद किये, आखिरी बार तुम्हें अपनी प्राथनाओ में कब जगह दी थी याद नहीं... आखिरी बार तुम्हें अपने ख्वाबो में कब ढूंढ़ा था पता नहीं....
अब अगर कुछ पता है तो बस इतना कि अगर कभी गलती से तुम सामने आ गए ना तो ये सच है कि मर जायेंगे... पर ये भी सच है कि तुम्हें सिर्फ एक झलक भर देख लेने के बदले अपने हिस्से की हर खुशी का सौदा कर सकती हूँ।-
इस तरह जो मिल गये हो मुझे तुम
तो खुद को ज़रा यहीं थम जाने दो
नज़र भर के देख लो मैं तुम्हें
वक्त को बस यहीं ठहर जाने दो
ये जो आँखों से अपनी तुम हजारों बातें
बातें कह रहे हो ना
नज़र पढ़ लेने का हुनर मेरा आज मुझे आजमाने दो
खुद को जो सँवारा है आज सिर्फ तुम्हारे लिए
ठहरो ज़रा तुम्हारी नज़रों से मेरे गालों पर हया का सुर्ख रंग छाने दो
अक्सर जो बातें तुम्हारी तस्वीरों से करती हूँ मैं
आज उन बातों को जबाँ पर आने दो
मुश्किल नहीं है मेरी बढ़ती धड़कनों को काबू में करना बस मेरे इन काँपते हाथों को ज़रा थामों और मुझे तुम्हारे सीने से लग जाने दो-
मृत्यु से भी भयावह हो जाता है वो पल
जब प्रेम से ही प्रेम की भीख मांगनी पड़े-
ना जाने कैसे पर एक दफा फिर से
एक शख्स मेरी दुआओं में शामिल होने लगा है ..-
हाथ मिलाने से भी खौफ खाते हैं
कहीं आज भी किसी और का मुझे छूना
उससे बर्दास्त न हो 💔-
मुझे सुकून मिले एक नजर उसे देखने से
ऐसी मोहब्बत ख़्वाब में भी न हो किसी से-
तुम्हारे जाने के बाद मैंने सबसे पहले
हालातों को दोषी ठहरा फिर एक लम्बे समय तक मैंने तुम्हें दोषी ठहराया
मुझे लगता था कि तुम रूक भी तो सकते थे,
तुम वापस लौट भी तो सकते थे,
तुम चाहते तो सब ठीक हो भी सकता था,
खैर होने को तो कुछ भी हो सकता था,
और फिर एक समय ऐसा भी आया जब इन सब हालातों के लिए मैने खुद को कसूरवार ठहराया...बहुत समय तक हालातों से, लोगों से, खुद से भी दूर भागती रही ... पर अब मैंने ये जान लिया है कि गलती चाहे किसी की भी रही हो यहाँ कसूरवार कोई नहीं ...
तुम्हारा मेरी जिंदगी से चले जाना,
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आने से पहले ही तय था...
और अब मेरे मन में तुम्हें ले कर किसी भी तरह की नफरत नही अब तुम्हारे नाम से मुझे कोई पीड़ा नहीं होती...अब मैंने तुम्हें माफ कर दिया है क्योंकि अब मैंने किसी भी नफरत , पीड़ा या द्वेष से ऊपर सुकून को चुना है ...अब मुझे मेरे जीवन में बस सुकून चाहिए ...
और इसके साथ ही सालों बाद आखिरकार मैंने खुद को भी माफ कर दिया ..-
अगर त्याग ना हो ,
तो मोह का अस्तित्व क्या है ?
अगर मोह ना हो ,
तो त्याग को कौन सराहेगा ?
मोह और त्याग , प्रेमी हैं ,
जिन्होंने मोह में ,
एक - दूसरे को त्याग दिया ,
अब दोनों अलग - अलग ,
प्रेम को जीवित रखते हैं ,
मोह के त्याग , और त्याग के मोह से परे ,
प्रेम को जीवित रखना ,
यही प्रेम है ।-