हिंसा नही सिर्फ शारीरिक प्रहार
मन मस्तिष्क का भी करती ये संहार,
चोटिल हो जाता है मन मस्तिष्क सुनकर तीखी वार्तालाप
छलनी हो जाती है गरिमा और साथ मे आत्म सम्मान,
देखते हैं सब सिर्फ शारीरिक हिंसा
नही है कोई पैमाना जो मापे मन मस्तिष्क की हिंसा,
हिंसा का ये है नया हथियार बुरे विचार और दुर्व्यवहार,
हिंसा नही सिर्फ शारीरिक प्रहार
मन मस्तिष्क का भी करती ये संहार!!!!
_Megha Shishodia
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ये कैसी प्रथा चली है मेरे देश मे,
जग जननी ही सुरक्षित नही है मेरे देश मे,
जहाँ हिन्दुत्व की मिसाल देते हैं,
वॅहा जबरदस्ती दाह संस्कार करने लगे हैं,
जहाँ पूजते हैं नारी की मूर्ति को देवी के रूप मे,
वॅहा उसी नारी का अपमान करने लगे हैं,
जहाँ नारी को बांधते हैं माँ,बहन,पत्नी,बेटी जैसे रिश्तो में,
वहां उसी नारी को अकेले देखकर इज्जत उतारने लगे हैं,
ये कैसी प्रथा चली है मेरे देश में,
जग जननी ही सुरक्षित नहीं है मेरे देश में!!!!
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चलो आज फिर हँसते हँसते जिंदगी गुजार लेते हैं,
मिले हजार गम फिर भी मुस्कुरा लेते हैं,
कभी भिगाते थे पलकें तेरी यादों मे,
अब हँसते हुए खुद को संवार लेते हैं,
जिंदगी भरी है जख्मो से वक़्त को मरहम बना लेते हैं,
चलो आज फिर हँसते हँसते जिंदगी गुजार लेते हैं!!!!
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चीख चीख कर इंसाफ मांग रही है,देश की बेटियां,
कई बरसो से कुचली जा रही है बेटियां,
ईमान से भटके हैं पुरुष,जिंदगी हार रही है बेटियां,
चीख चीख कर इंसाफ मांग रही है,देश की बेटियां,
फूल सी कोमल कहते हैं उनको,पर सिसक रही है बेटियां,
कोई सुने या ना सुने,फिर भी पुकार रही है बेटियां,
चीख चीख कर इंसाफ मांग रही है,देश की बेटियां,
शर्म भी यॅहा खुद ही शर्मसार है,अब कहाँ जाए बेटियां,
कभी सहती है कभी कहती है,कभी चुप रहती है बेटियां,
चीख चीख कर इंसाफ मांग रही है,देश की बेटियां,,,,-