राह
राह थम सी गई है,
दूर- दूर तक कोई नहीं है।
धूल का एक कण भी
राह पर अब उड़ता नहीं है।
जितना भी आगे चलूँ,
मेरी घड़ी का कांटा वहीं रुका है।
...(बाक़ी कैप्शन में)...-
Instagram- Positive_You_MK
FB Page(Positive You)- @meghakaushik15
ओ चंदा मामा दूर के, सब बच्चे तुमको हैं कहते।
अब तुम हो एक टूर के, विक्रम, प्रज्ञान अब तुम पर रहते।
धरती माँ के तुम हो भाई, कुछ तो होगी
एक संरचना केमिकल्स की तुम में भी समाई।
चौदह दिन और चौदह रात का समयचक्र दक्षिणी ध्रुव पर,
ढूंढेंने नई आशा के कण विक्रम, प्रज्ञान खड़े हैं तुम्हारे द्वार पर,
साथ दो इस बार तुम, करने को हैं अपार परिश्रम,
इसरो वैज्ञानिक लेकर दृण संकल्प, चलेंगे आगे बिना रुके एक पल।
ओ चंदा मामा तुम्हारी ओर मानवता ने हाथ बढ़ाया।
क्या तुम्हारे घर में है उत्तर, जो हमनें प्रश्न आज़माया ?-
छोटी-छोटी ख़ुशियों की पोटली है।
सिर्फ बड़ी ख़ुशी का इंतज़ार करना
आख़िर क्या ज़िंदगी है?
बड़ी ख़ुशियों की बात ही निराली है।
लेकिन, छोटी ख़ुशियाँ ही तो करती
ज़िंदगी में रंगों की बहाली हैं।-
try to live fully in the
present moment so that
your future is less filled with
problematic thoughts and
your mind can more easily
deal with problems
instead of stress.-
वो उड़ी पतंग, लो उड़ी पतंग,
सर-सर करती मेरी पतंग।
हवा में इठलाती, बलखाती,
गोते खाती मेरी पतंग।
छूना है इसे आसमान,
अब न रुकेगी मेरी पतंग।
हवा से बातें करती,
पेंचे लड़ाती मेरी पतंग।
जितनी भी छुए ऊँचाई गगन की,
डोर धरती पर रखती मेरी पतंग।
हर उड़ान में खुशियाँ जीकर,
मस्ती करती मेरी पतंग।-
मन में छोटी सी ख़्वाहिश लिए,
वह आया इस बाहरी दुनिया को समझने,
न जाने कहाँ था अब तक वह,
सिमटा अँधेरी चादर में,
इस बाहरी दुनिया से अनजान,
इसे जानने को उत्सुक, नादान।
...(कैप्शन)...-
कैसा हो बचपन ?
किताबों से घिरा,
लेखों-सा लिखा,
जिसमें अध्ययन विषयों की चर्चा हो हर पल समाई।
या हँसता-गाता,
मौज उड़ाता,
हर पल हो जिसमें खेलों की मस्ती छाई।
या कविता-सा सुंदर,
कहानी का हर रस भरा खेल और पढ़ाई का पल,
माता- पिता भी जिसमें अच्छा साथ दें भाई।
कहने को है वह नादान,
पर लटकी है जन्म से सिर पर तलवार महान,
क्योंकि हर कदम पर चुनना है एक बचपन
ताकि न ही ख़ुद को बल्कि
माता-पिता को भी न हो कोई कठिनाई।-
माँ तुझसे मैं हूँ,
मुझ में तू है।
मन मेरा दर्पण, जिसमें
तेरा स्वरूप है।
नाजानू मैं फिर क्यों अज्ञानी हूँ,
अंततः तेरा ही अंश, निशानी हूँ।-