FESTIVAL OF LIGHTS
क्या करू उस रोशनी का , जब तुझ बिन ज़िन्दगी में अंधेरा हैं ,
क्या करू उस मिठास का , जब तुम बिन ये दिल अधूरा हैं ।
यूं तो लोगों के सामने मुस्कुराती रहतीं हूं मैं ,
कुछ ऐसे ही गम छुपाती रहतीं हूं मैं,
तुझ बिन हूं मैं इतनी अधूरी ,
जितनी है , आसमान और ज़मीन में दूरी ।
कैसे समझाऊं अपने नादान दिल को ,
जो तड़पता है सिर्फ़ तुझसे मिलने को ,
कैसे बताऊं तुझे इस दिल की मजबूरी,
तेरे बिन मेरी हर खुशी है अधूरी ।
काश तू लौट आए जैसे आते है ये त्यौहार ,
तुझसे मिलने को मेरा दिल है बेकरार ।
तुझसे ही दिवाली ,तुझ संग ही होली,
पर ये पीर अपनी मैंने किसी से ना बोली ,
अपनी बेबसी तुझको कैसे समझाऊं ,
तुझ बिन मैं बस मरती जाऊ ।
क्या करू उस रोशनी का, जब तुझ बिन ज़िन्दगी में अंधेरा हैं,
क्या करू उस मिठास का,जब तुम बिन ये दिल अधूरा हैं।
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