मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम का वेग इतना तीव्र था कि मुझसे गले लगे हुए मेरे प्रिय को चीरते हुए मुझमें से गुजरा
और हम सब मर गए-
किसके साथ गुजारुं शामें, तुम भी हो और वो भी है
तुम उसके गम में साथ मेरे, वो हर एक गम में साथ यहां
तुम ठीक सामने नज़रों के, वो नज़रों में है चढा हुआ
तुमसे ये प्यार नया सा है, उससे भी कहां पुराना है
कल से ही तुमको जाना है, उसमें तो मेरा ज़माना है
पर नाता क्यों वो तोड़ गया, क्या लिए तुम्हारे छोड़ गया
कुछ कह जाता कुछ सुन जाता, कुछ देर ज़रा वो रह जाता
तुम आए हो तो कहूं तुम्हे, मुझे ऐसे छोड़ नही जाना
जब बिखारूं में या टूट जाऊं तो गले लगाकर सहलाना-
फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का बदल सा रहा है
शाम-ओ-सहर ज़िक्र दिल में तेरा चल रहा है
हुआ तो नहीं पहले दिल को कभी ये
क्यूं उसे देख के ये मचल सा रहा है-
तेरे अबके होने में तेरे तब से होने का इंतजार करती हूं
मैं सिर्फ तुमसे प्यार करती हूं।-
आत्म चिंतन
क्यों आए हैं क्या पाना है,क्या स्वयं को बोले जाना है?
जब भी तम से आवृत्त हो मन,जब स्थितियां हो सभी विषम
असफलताओं भरा अतीत दिखे,कहे हार के रुक जाने को तन
जब मन में कोई आस ना हो,खुद पर ही विश्वास ना हो
इस जग का जब परिहास दिखे,अपने सपनों का ह्रास दिखे
व्यंगो के तुम पर तीर चलें,जब निज विचार ही तुम्हे छलें
तब अपनी आंखें मूंदो तुम,अंतर्मन में ये बूझो तुम।।
क्यों आए हैं क्या पाना है
जब तम लिप्त विचारों में,संकल्प की ज्वाला जलती है
तब घोर विषमतर असफलता की,स्थितियां भी सम बनती है
विषम दशाएं ही जीवन के ,सत्य हमें दिखलाती है
मेधा ,शक्ति ,स्व विवेक,प्रज्ञा का बोध कराती हैं
स्वयं को कम ना आंको तुम,अंतः स्थल में झांको तुम।।
क्यों आये हैं क्या पाना है?
स्व संशय का भाव ना हो,ऊर्जा का कभी अभाव ना हो
जब तक तृप्ति ना प्राप्त करो,दृष्टि में तब तक लक्ष्य रखो
तुम स्वयं अप्रतिम रचना हो,तुलनीय नहीं तुम मोघ नही
आत्म द्वंद्व को त्याग करो,उठ चलो लक्ष्य को प्राप्त करो।।-