Megh   (© Megh)
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Joined 4 May 2019


Joined 4 May 2019
25 JAN 2022 AT 23:43

यूँ अचानक मिले हो कैसा हूँ पूछ कर वक्त ना कर ज़ाया
फ़ौरन आ आग़ोश में वगरना सब अच्छा है और मैं भी— % &

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25 JAN 2022 AT 8:56

उस के कहने पर मैं आज सोचा हूँ
इन दिनों मैं ये क्या करते रहता हूँ

ख़बर है मुझे मैं नहीं रहता होश में
तुझे देखने बाद ही से ऐसा हुआ हूँ

मेरे दिल पे हाथ रख के क्या किए
हर पल ख़ुद को लगता नया हूँ

तुम मेरे क्या हो ? नहीं जानते तुम
आज अकेले में आईने से पूछा हूँ

आज फ़क़त एक रस्म पूरी होगी
मैं कई दफ़ा तेरे घर आ चुका हूँ

तुम व्यस्त होगे मगर तेरी कमी है
इसी वजह से तुझे कॉल किया हूँ

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24 JAN 2022 AT 21:49

ख़ुद को जब भी आईने में देखा करता हूँ क्या बताऊँ
सामने मेरा वो ' मैं ' होता है जो था कभी मुझे मंज़ूर नहीं

वो रात तो गुज़र गई पर बात भी इतनी बिगड़ गई कि
चांद को मेरी सूरत गँवारा नहीं चांदनी रात मुझे मंज़ूर नहीं

इतनी ठोकरें दी दिल की बस्ती के बाशिंदों ने कि दोस्त
अब वज़ह-ए-ठोकर ख़ुद भी मरहम करे मुझे मंज़ूर नहीं

मैं ही शब-ए-फ़िराक काटूँ और कलाई भी मैं ही ,नहीं
मोहब्बत में फ़क़त सब अच्छा हो मेरा ही मुझे मंज़ूर नहीं

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24 JAN 2022 AT 12:01

मैं ही शब-ए-फ़िराक काटूँ और कलाई भी मैं ही , नहीं
मोहब्बत में फ़क़त सब अच्छा हो मेरा ही मुझे मंज़ूर नहीं

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23 JAN 2022 AT 23:45

गर तुम नहीं आए और मैं यूं ही तड़पते-बिलखते मरा
इल्ज़ामात शक कैसी कैसी बातें होंगी जो तुझे मंज़ूर नहीं
मरना क्या है अभी नेज़ा उठा अपने सीने में उतार लूँ
मगर ख़ुदाया तेरी ख़ुदाई पे शक़ करे कोई मुझे मंज़ूर नहीं

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23 JAN 2022 AT 21:51

रूको हम-राह अब यहीं से तुम लौट जाओ
अब हमारे साथ चलने का कोई मतलब नहीं
जान-ए-जाँ तुम्हारा साथ होना ही मेरा होना है
और तो मुझे तुम से ज़ींदगी से कोई तलब नहीं

तेरा नाम जुबां पर तेरी सूरत चश्म में इसीलिए
कज़ा ने अपने सामियाने तले ज़िंदगी दे रक्खा है
तेरी तस्वीर दीवार-ए-दिल पर और कमरे में अंधेरा
नहीं मुमकिन,
तेरी सूरत के दो जुगनूओं ने रोशनी दे रक्खा है

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19 JAN 2022 AT 0:20

अपने चाहने वाले पे यूं न सितम बपा करिये
हाथ मिलाना ठीक पर गले तो न मिला करिये

हमें भी यक़ीन रहे अभी आप ख़ुदा नहीं हुईं हैं
हज़ार सदा पे एक दफ़ा ही पीछे पलटा करिये

कौन जाने एक दिन यही दामन बचा ले जाए
हफ़्ते में एक दिन सही कांटों को सींचा करिये

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12 JAN 2022 AT 22:16

दस्तक

चाँद तो सोया ही रहा कई रात
जगा भी तो एक बरगद के टहनियों में ही उलझ
जुगनू बन के वहीं मंडराते रह गया

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11 JAN 2022 AT 23:49

दो-चार लोगों से भी पूछा था टिकट भी सही था
रास्ते की ख़बर न थी पर सोए भी नहीं थे बैठे थे
यार ख़ुदा इश्क़ इबादत नया सफ़र ,ये रेलगाड़ी
कहाँ ले आयी हमें औ' हम कहाँ जाने को बैठे थे

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11 JAN 2022 AT 13:31

मुझे जानते हो न तुम
मुझे जो जानते है वो जानते हैं
मैं अस्तित्व में हूँ ही नहीं
मैं अस्तित्व में हूँ तो सिर्फ कविताओं में ही
या मैं ही हूँ ... कविता
[In caption ]

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