वो चुप सी लगाए बैठी है,
ना जाने किस उधेड़बुन में।
वो कटी पतंग तो नहीं ,
उसका मांझा लिपटा है, घीरनी से।
वो कहती है पर,
गले तक आकर रह जाता है कुछ
वो बीन म्यान तो नहीं,
तेज है तलवार, धार से।
वो ताक रही है एकटक,
किसी अपने को।
वो बेराह तो नहीं,
राहें भी आबाद है, हमराह से।
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