कोई इंतिहा नहीं
कोई इब्तिदा नहीं
तू सिर्फ हुक्म कर
कोई इल्तिज़ा नहीं
मेरी मोहब्बत है ये
कोई इत्तीबा नहीं
कोई इंतीहा नहीं
कोई इब्तिदा नहीं-
के
नज़र आजाओ के
नज़र आए हैं हम
सिर्फ तुम्हारे लिये
कोई क्या कहे हमें
कोई क्या सुने हमें
कहना सुनना तो
सिर्फ तुम्हारे लिये-
तेरे वजूद के बावजूद भी
यूं तकलीफ में कमी क्यों
तन्हा रातों का सूकूं कैसे
ये उलझे एहसास है कहां
तेरे वजूद के बावजूद भी
दिल खाली खाली क्यूं है
-
कर रखा है
एक आज़ाद परिंदे कि तरह
छत को आसमां मान लिया मैंने
मरी रूह जीस्म ज़ीनदे कि तरह-
ये ग़म है और ये रुसवाई
ये दिल तो पत्थर हो गया
जब दुनिया इससे टकराई
पत्थर ने तेरा नाम लिया
तब आंखों से तू बह आइ-
उसे तयार होने में
देर लगती है मगर
बिना मेकअप भी
कहर लगती है मगर
वो साथ बैठे यूं मेरे
सीने से लीपट कर
कहर सर्दी का हो
दोपहर लगती है मगर-
कुछ याद भी है, तुम्हें
वो जो पल बिताए थे
हां जो कल बिताए थे
अब तो साल बीत गए
पर,वो सवाल जीत गए
क्या इश्क दो तरफा था
या तू अकेले तरसा था
जवाब तो आज भी नहीं
मैं खुली किताब तो नहीं
शायद
अब कुछ याद भी नहीं-