फिर से आने का वादा करके चला गया क्षितिज के पार, सबके नसीब में ऐसा सूरज नहीं होता।
लम्हों में ख़त्म जाती है ज़िंदगी कभी भी, मौत के आने का कोई महूरत नहीं होता।
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Sometime it's the best way to express your pain , your happines... read more
आज फिर से हमने एक सपूत खोया है
तुम्हें न जानने वाला भी फूट-फूट रोया है
मुस्कुराहट तुम्हारी याद करके आँखे सबकी नम हैं
ज़ुबाँ ख़ामोश भले हों मगर दिलों में सैलाब-ए-ग़म है
न जाने कैसे और कब आंसूँ सूखेंगे अपनों के
यादें ज़िंदा रहेंगी मगर जीना होगा बिन सपनों के
माँ- बाप ढूँढेंगे माथा तुम्हारा चूमने को।
भाई अकेले रह जाएँगे दुःखों से जूझने को।
जीवन संगिनी को तुम्हारा साथ न होगा।
बच्चों के सिर पर पिता का हाथ ना होगा।
बहन की राखी को अब कलाई नसीब न होगी।
त्योहारों में पहले जैसी अब कोई बात न होगी।
ज़िंदादिली पर तुम्हारी,हर शख़्स जाँनिसार हैं।
तुम्हारे दोस्तों को भी तुमसे बे इंतहा प्यार है।
है दर्द सबको मगर तुम्हारी शहादत पर नाज़ है ।
देश पे मिटने वाले सबसे ऊँची तुम्हारी परवाज़ है।
मगर बलिदान तुम्हारा न व्यर्थ होगा।
तुम्हारे हत्यारों के साथ भी अब अनर्थ होगा
इस मिट्टी का क़र्ज़ तुमने चुकाया है ।
“आकाश” तुमने वीरता का आकाश पाया है ।
सादर नमन 🙏🏻
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खुशियों का इंतज़ार क्यों करना
दिल को यूँ बेक़रार क्यों करना
जहाँ मिले मौक़ा खिलखिला लो जी भर के
वजह की तलाश में ख़ुद को ख़्वार क्यों करना
कभी ख़ुद से भी मोहब्बत कर के देखो
सिर्फ़ महबूब से प्यार क्यों करना
उम्मीदें बहुत नाउम्मीद करती हैं
किसी की आस में दिल को बेज़ार क्यों करना
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आँखों से दिल का सफ़र तय करते करते
हम बड़ी दूर चले आए हैं डरते डरते
इक तेरे साथ जीने की तमन्ना लेकर
न जाने कितनी बार मरे तुझ पे मरते मरते
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तमाशा धर्म का बनाने वालों ,
बेगुनाहों पर गोलियाँ चलाने वालों
कहते हो ख़ुद को इस्लाम का ठेकेदार ,
अमन की कोशिशें मिटाने वालों।
लानत है तुम पर और तुम्हारे सरपरस्तों पर ,
दहशतगर्दी से मज़लूमों को डराने वालों।
मुल्क में भाई चारा कैसे हो बर्दाश्त तुमसे?
तशद्दुद को अपना मक़सद बनाने वालों।
किसी का पिता,किसी का बेटा,किसी का भाई, किसी का सुहाग छीन लिया
तुम भी चैन से ना जी सकोगे नफ़रतें फैलाने वालों
मज़लूमों की चिताओं पर अब सिकेंगी, सियासत की रोटियाँ
बताओ क्या मिला तुमको जन्नत को दोज़ख़ सा बनाने वालों।
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तुमने सुनना बंद कर दिया और मैंने बातें करना छोड़ दिया
जो टूटा कभी तुमने जोड़ा था उसे फिर तुमने ही तोड़ दिया
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न जाने कितने सारे किरदारों में नज़र आता है
कभी पिता,कभी भाई और कभी दोस्त बनकर साथ निभाता है
ज़िंदगी के किसी मोड़ पर मिलता है महबूब बनकर
फिर मोहब्बत की राह पर चलना सिखाता है
दुनिया की भीड़ में चलता है हाथ थामकर
हर उतार चढ़ाव में साथ देकर हमसफ़र बन जाता है
माँ बाप का सहारा और बहन की हिम्मत होता है
बेटी के हर नाज़ उठाता है उसकी ताक़त बन जाता है
ख़ानदान का मुहाफ़िज़ बन कितना कुछ झेलता है अकेले
अपना हर दर्द अपनी ज़िम्मेदारियों के पीछे छुपाता है
कुछ इसी तरह कई पायदान तय करते करते
नादान और अल्हड़ सा लड़का एक दिन मर्द बन जाता है …
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कभी यूँही ख़याल आता है
अक्सर दिल में सवाल आता है
कुछ ख़तायें ज़िंदगी का रुख़ बदल देती हैं
हिस्से में सिर्फ़ मलाल आता है…
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हर एक पल ख़ुशनुमा नहीं होगा
सुकूँ से भरा ये समा नहीं होगा
जी लो जितना जी सको इन पलों को
जो अभी है साथ कल यहाँ नहीं होगा
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छोटे शहरों से बड़े ख़्वाब लिए
अपनी जेबों में ढेर सारी आशाएँ लेकर
निकल पड़ते हैं तमन्नाओं की उड़ान भरने
दम लगता है ख़्वाब को हक़ीक़त में बदलने में
कभी दिल टूट जाता है कभी हिम्मत
लेकिन हारने नहीं देता कुछ कर दिखाने का “जज़्बा”
जो बुझती उम्मीदों के बीच, दिलों में फिर से शोले भड़का देता है-