پروین شاکر
Parveen Shakir
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अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
मैं तो उस दिन से हिरासाँ हूँ कि जब हुक्म मिले
ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
कोई आहट कोई आवाज़ कोई चाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान हैं आए कोई
Parveen shakir-
जान देना तो एक लम्हे कि बात होती है,
ज़िंदगी देना मुश्किल है,
और मैंने तो ज़िंदगी का हर एक लम्हा,
तुम्हे दे दिया है,
तुम्हारे नाम कर दिया है...।।
Jaan dena to ek lamhe ki baat hoti hai,
Zindagi dena mushkil hai,
Aur maine to zindagi ka har ek lamha,
Tumhe de diya hai,
Tumhare naam kar diya hai....
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बाज़ार में जिस
भी चिज़ कि
ज़रूरत होती है,
वह चीज़
बाजार में
बनाई जाती
है या फिर
वह ख़ुद-ब-ख़ुद
बन जाती है,
जैसे पहले
वैश्या "औरत"
होती थी पर अब
वैश्या "मर्द"
भी होते हैं..।
©Meenujha_qafiya-
Itna kuchh to hai mayassar,
Mujhe dekhne ke liye,tere siwa,
Par in aankhon ka khalipan
kambakht bharta hi nahin...
@Meenujha_qafiya
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वास्तविक सूखा और अकाल,
तब पड़ेगा,
जब हम स्त्रियों के आँसू,
सम्पूर्ण रुप से सूख जाएंगे।
©Meenujha_qafiya
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