लिख देती हूं अक्सर पन्नों पर भाव
क्युकी भरते नही मेरे मन के घाव
नैनों से नीर का रुकता नही रिसाव
कैसे बनू मैं प्रस्तर कोई दे दे सुझाव
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नयन तुम्हारे बन जाए दर्पण
तो मैं करु श्रृंगार
प्रीत का सागर तुम बन जाओ
तो मैं मिल जाऊं तुममें जैसे नदी की धार
तुम जो मनाओ मुझको प्रियतम
मैं रूठूं बारम्बार
पर तुमसे हो गर मेरी अनबन
जीत न चाहूं,मैं चाहूं जाऊं तुमसे हार
तेरे चरण में अब किया समर्पण
ले के शरण में मुझको कर दो न उद्धार-
बरसों से आंखे मेरी
ये सोई नहीं है
आंखे पथरा गई
पर ये रोइ नहीं है
टूटे है ख्वाब इसके
हर पल ही मगर
उम्मीदें इसने देखो
अब तक खोई नही है
रख दिया है माथ
मैने तेरे ही चरण में
ले लो न मुझे तुम
अब अपनी शरण में
एक तेरे सिवा मेरा
यहां कोई नही है
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सांस हमारी
धड़कन तुम्हारी
नयन हमारे
छवि तुम्हारी
शब्द हमारे
भाव तुम्हारे
अधर हमारे
हंसी तुम्हारी
माथ हमारे
चरण तुम्हारे
जिंदगी हमारी
खुशी तुम्हारी
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उखड़ती सांसों को तुम
नई सांस दे जाना
बोझिल सी जिन्दगी को
नई आस दे जाना
दरकते विश्वास को
अटूट विश्वास दे जाना
रिश्ते से भरे बाज़ार में
अनाथ हो रही हूं
हो सके तो इस अनाथ को
अपना साथ दे जाना
जिंदा जिश्म में अब
हृदय का स्पंदन न रहा
अपने पावन स्पर्श से इसे
जीवित होने का अहसास दे देना
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बेसब्र सी इन आंखों को अब सब्र चाहिए
रुसवाइयों से थके जिस्म को अब कद्र चाहिए
जुस्तजू नही अब जीने की तेरे बैगैर एक पल
मुझे तेरी बांहों में अब मेरी कब्र चाहिए-
बेसब्र सी आंखों को अब सब्र नहीं
बेघर से हम हमारा कोई घर नही
सुना है वक्त भर देता है हर जख्म
पर कुछ जख्मों के होते मरहम नही
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बहुत कुछ कहना है तुमसे
जरा फुरसत में मिलना मुझसे
अश्कों का समंदर बहाना है
संभल के संभालना मुझे
कही डूब न जाना मुझमें
बरसो से तरसी हूं प्रेम को
बेइंतहां प्रेम दे जाना मुझे
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जमीं से लेकर
आसमान तक
मेरा ही राज है
ये चांद सितारे
मेरे हमराज है
गलफहमी ही सही
पर किसी की नजर में
ये नचीज उसके
सिर का ताज है-