16 APR 2018 AT 13:34

साधु भूखा भाव का,धन का भूखा नाहीं।

धन का भूखा जो फिरै,सो तो साधु नाहीं।।




देखिए इस दोहे मेँ सन्त कबीर जी ने साधु के बारे में कहा है की साधु को धन सम्पत्ति से कोई मतलबनहीं,साधु केवल भगवान की कृपा पर ही जीवन है बिताता,लोगों को हरि नाम की महिमा के बारे मेँ बता कर उन्हें मोह-माया से मुक्त करवा ईश्वर के करीब है लाता। परन्तु आज का साधु तो भगवाँ चोला पहन घिनौने कर्म कर अत्याचार ढा रहा,नीचे लिखी चंद लाईनों को अपना लाईफ स्टाईल बतला रहा:-


साधु भूखा धन-मान का,भाव का भूखा नाहीं।

भाव का भूखा जो फिरै,सो तो साधु नाहीं।।

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