याद आ रहा है मुझे बचपन का अफसाना।
प्यारी सी गौरैया का जामुन के पेड पर घोंसला बनाना।।
अपने साथी संग सुबह -सवेरे उड -उड जाना।
शाम ढलते ही वापिस आ दोनों का चहचहाना।।
अण्डे देना, अण्डों को सेहना,अण्डों से बच्चों का चीं-चीं करते निकल आना।
चिडिया का फुदक-फुदक चोगा चुगना और चोंच से बच्चों के मुँह मे पाना।।
बडे होते बच्चों को उडना सिखाना।
गौरैया का बच्चों संग खुशीयाँ मनाना।
ना जाने यह कैसा जालिम वक्त है आया।
मेरी प्यारी गौरैया को ना जाने इस वक्त ने कहाँ छिपाया।।
गौरैया के साथ-साथ मैंने छोटी-छोटी खुशियों को भी गवाया।
बडा मकान,बडी गाडी, मँहगे फोन ने मेरा स्टेटस बढाया।।
इसी स्टेटस की खातिर मैंने खुद को बैंक से लोन ले कर्ज मे डुबाया।।
कर्ज के बोझ तले दबा इन्सान कभी खुश नहीं रह पाया।
मेरी प्यारी गौरैया ने मुझे छोटी-छोटी खुशियाँ समेटना था सिखलाया।।
हाय मैंने अपनी गौरैया के साथ-साथ छोटे-छोटे सुखों को भी गवाया******
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