वो मशगूल हैं इतने किदरख्त से भूल कर वास्ता लगे हैं पत्तियों से राब्ता बढ़ाने में मौसम बहारों का है मशगूल ही रहिऐ जनाब, लेकिन अंजाम क्या होगा इन नए कायम रिश्तों का?खिजांओं के आने से? - Wings Of Poetry
वो मशगूल हैं इतने किदरख्त से भूल कर वास्ता लगे हैं पत्तियों से राब्ता बढ़ाने में मौसम बहारों का है मशगूल ही रहिऐ जनाब, लेकिन अंजाम क्या होगा इन नए कायम रिश्तों का?खिजांओं के आने से?
- Wings Of Poetry