खुली आँखों से जब कभी ख्वाब देखती हूँ
ख्वाब के उस पार खुद को आज़ाद देखती हूँ
गलियाँ बचपन की और मकान हसरतों के हैं
हर ओर खिड़कियों से झाँकते आफताब देखती हूँ
देखती हूँ झुर्रियों से सजे मुलायम हँसते से चेहरे
चेहरों में कई दशकों की छिपी दास्तान देखती हूँ
छतों पर अठखेलियाँ करती अलहड़ सी जाड़ों की धूप
धूप में अंगड़ाई लेते हुए सहन और दालान देखती हूँ
छेद वाली नन्ही सी जेबों में भर खनकती सी हँसी
राह में बिखराते दौड़ते बचपन की शान देखती हूँ
बेतरतीब से बिखरे बालों से खेलती फाल्गुन की हवा
हवा संग झूमते मस्त दिल के बेबाक अरमान देखती हूँ
जून की रातों में चाँद-तारे लिए मुस्कुराता सा आसमान
उसमें गुम आने वाले कल को ढूँढते नयन हैरान देखती हूँ
फिर देखती हूँ फिसलकर आ पहुँचा है जो आज
इस आज में अब खुद को कुछ गुलाम देखती हूँ
कहीं हसरतों की किरचियाँ कहीं उम्मीदों की मांग
इन्हीं में उलझा नाकाम परेशान इंसान देखती हूँ
खुली आँखों से जब कभी ख्वाब देखती हूँ
ख्वाब के उस पार खुद को आज़ाद देखती हूँ
Meenakshi Sethi #wingsofpoetry-
मेरे इशक़ की मुमताज़,
ये लेखनी मेरी आवाज़
ये कलम स्याही बिखराती हुई,
बयाँ करती है दबे से राज़
खुद गढ़ दिए पन्नों पर तेरे,
ऐ ज़िंदगी कितने ही ताज़
संगमरमर से चमकते हैं अब,
वक़्त ने जो छोड़े थे दाग
इबरत यही हासिल की कल से,
संवारे क्यों न अपना आज
क्यों सिसकना गुनगुनाते हुए,
नामुकम्मल कहानियों के राग!
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-
मानवी
मैं टूटती हूँ हज़ारों बार फिर जुड़ जाती हूँ बिना आवाज़
ये टूटने और जुड़ने की प्रक्रिया घटती है बार-बार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक चट्टान ।
मैं डूबती हूँ गहन अंधेरों में और छटपटाती हूँ बेहिसाब
फिर लौट आती हूँ किनारों पर थक-हार; तार-तार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक परिपक्व तैराक ।
मैं ओढ़ती हूँ तन्हाइयाँ हज़ारों की भीड़ में चलते हुए
खुद से ही करती हूँ वार्त्तालाप दिन-रात
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं कितनी बेज़ार ।
मैं बहती हूँ समय धारा में अनथक करती अथक प्रयास
और टकराती हूँ निर्मम लहरों से चुपचाप
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक युयुत्सु नाकाम ।
मैं देखती हूँ सहती हूँ फिर अनदेखा, अनसुना कर हर वार
मुस्कुराकर चल देती हूँ करने एक और क्षितिज पार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं अक्षम्य कुलांगार ।
मैं कहती हूँ; सुनो मेरी भी दुनिया है तुम्हारी ही दुनिया के साथ
और वो हँसते हैं ज़ोर से ठहाका लगाकर बेहिसाब
और जान लेती हूँ; कि हूँ मैं एक अतीन्द्रिय विचार।
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-
शायद ये लफ्ज़ आखिरी हों गज़ल आखिरी हो,
न जाने कि कौन सा अब सफ़र आखिरी हो!
हर इम्तिहान पर इम्तिहान दे कर ये सोचा,
काश कि अब ये इम्तिहान आखिरी हो!
बहुत रुस्वा हुए बहुत तड़पाए गए जब,
तब तड़प कर बोला मन ये तड़प आखिरी हो!
क्यों सख्त जान है तू, क्यों बेमुरव्वत है ऐ दिल,
क्या जाने कि कब तेरी धड़कन आखिरी हो!
हम भी दर्द को और न उतारेंगे कलम से,
बशर्ते कि ज़माने का ये सितम आखिरी हो!
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-
Hearts filled with love
Capable to give and receive mercy
Are the best hearts, that
He has crafted with his special skills
With his love and light
Do you have one?
Or are you still standing in a line
To mend the one you have!
Meenakshi Sethi
-Wings Of Poetry
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वो जो अधूरा रह गया
मेरे होने में तेरा हिस्सा
तेरी कहानी में मेरा किस्सा
मेरे फसाने में बयाँ तेरा
तेरी हकीकत में शुमार मेरा
मेरे वजूद पर अख्तियार तेरा
तेरे वादों पर ऐतबार मेरा
मेरे लम्हों को इंतज़ार तेरा
तेरी कसौटी पर मेयार मेरा
मुझमें कहीं पूरा है तू
तुझमें कहीं अधूरी हूँ मैं
ये जो अधूरा रह गया
पूरी कहानी कह गया-
एक अलसाया सा जाड़े का इतवार
मंद आँच में ठिठुरा सा सूरज
धूप का इंतज़ार करती बालकनी
और मेरे हाथ में चाय का गिलास
चाय से उठता धुँआ
धुँए संग उड़ते से विचार
कौन सा पकड़ूँ कौन सा छोड़ूँ
किसे कराऊँ थोड़ा और इंतज़ार
या जाने दूँ सब को और अजनबी हो जाऊँ
अपने आज से निकल
कई साल पीछे छूटे बचपन में खो जाऊँ
उन जाड़ों के सुकून में उतरूँ
जेबों में गर्माहट भर लाऊँ
न कोई चिंता, न फिक्र, न बे सुकूनी
हाथों में एक पेंटिंग ब्रश
आँखों में ढेर से सपने
पूरा जीवन एक खाली कैनवस
जो चाहे रंग लो, जैसा चाहे रंग लो
काश बचपन का वही पेंटिंग ब्रश
उठा कर यहाँ साथ ले आऊँ
फिर से रंग दूँ सपने, उड़ते आज़ाद परिंदे
कुछ तिकोने से पहाड़,
कुछ झोंपड़ीनुमा खुशहाल घर
घरों के बाहर पेड़, पेड़ पर रस्सी का एक झूला
उस पर झूलते खिलखिलाते सपने,
आसमान छूती हिम्मत की पींगें
और एक पुरजोश इतवार!
मीनाक्षी #wingsofpoetry
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बहुत तवील नहीं ये सफर, फिर ये ग़फ़लत क्या है?
चंद बरसों की है रहगुज़र तो ये उलझन क्या है?
झीनी चादर है मैली, दाग-ए-किरदारों से
कफ़न है छोटा हद से बढ़ने की ज़रूरत क्या है?
दफ़्न हो जाएँगी ख़्वाहिशें, दो गज़ ज़मीन तले
तेरे ख़्वाबों की क़ैफ़ियत की हैसियत क्या है?
देखता कौन है, यहाँ किसी और के ज़ख़्म-ए-जिगर
टूटे अरमानों की फ़ेहरिस्त की ज़रूरत क्या है?
मुट्ठी में भींच रखा है जो, एक टुकड़ा सूरज
साँझ ढलने पर इस टुकड़े की मिल्कियत क्या है?
चल चल दें, नफ़स नींद के उस पार की कायनात तले
बे-ख़्वाबी के इस पार की दुनिया से निस्बत क्या है?
मीनाक्षी #wingsofpoetry-
End Of The Week
End Of The Month
End Of The Year
May with this End all worries, tensions, sadness and negativity from Everyone's life also end and May we all step into 2024 with Positivity, smiles and a lighter heart ❤️
Happy New Year! 😊-
Rising Above
And she learnt
From smoke
Which tends to move upwards
Leaving it's own identity behind
Surrendering itself to the air
Which is wise and sane
Rising above the flames
Meenakshi Sethi-