न कोई रंजो गम होगा न कोई मलाल होगा
बस एक चिता जलेगी और कमाल होगा
राख बन रह जाएंगी इस ओर चिंता और फिक्र
उस ओर का आलम तो बेमिसाल होगा
जनाज़ा कंधों पर लिए रोएंगे दिखावा करने वाले
जनाज़े से उठ गया है जो वो हर दिखावे से पार होगा
तुम भी आना देखने को वो मंजर ऐ हबीब
हर रक़ीब के चेहरे पर जहाँ नकाब होगा
जिन आँखों से बहेंगे वफ़ा के दो सच्चे आँसू
बाद मरने के भी रूह पर उनका उधार होगा
meenakshi@wingsofpoetry
— % &ताउम्र जागा किए जिन उलझनों को सुलझाने में
आख़िरी नींद के बाद हल हर सवाल होगा
यूँ ही ज़ाया की ज़िंदगी बुतपरस्ती में
मैं का बुत ढहे बिना, नहीं वो बेनक़ाब होगा
रूबरू आते ही रूह से फ़क़त यही निकलेगा
ए खुदा आखिर कब तक मेरा हिसाब होगा
अब तो बंद हो सिलसिला ये आवाजाही का
रूह को मयस्सर कभी तो निजात होगा
न कोई रंजो गम होगा न कोई मलाल होगा
बस एक चिता जलेगी और कमाल होगा
meenakshi@wingsofpoetry— % &-
अब लिखने का मन नहीं करता
किसके लिए लिखना है..
किसे सुनाना है..
कोई आखिर क्यों पढ़े मेरे लिखे अलफ़ाज़ों को
सबके अपने किस्से हैं..
सबका अपना फ़साना है..
था इक दौर जब आशिक थे हम खुद की लेखनी के
बस इक वहम ही था कि..
सब उनके लिए है सब उनको सुनाना है..
वक्त के दरिया में बहुत तैरी अहसासात की लाशें
जो डूबा वो मन था..
जो ज़िंदा सा दिखता है वो ज़िंदगी का बहाना है..
चल हो लेते हैं राज़ी हम तेरी रज़ा में
तेरा गम भी मुक़द्दस है..
तेरे अश्क भी शहाना हैं..
-मीनाक्षी सेठी
Wings Of Poetry-
"What is love?"- asked the earth to the sky. "It is sending warmth and comfort to each other's heart"- replied the sky
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अभी सफर बहुत तुम्हें करना है,
ये पल दो पल की बात नहीं,
अभी मीलों पैदल चलना है।
भार को नीचे रख दो ज़रा,
ये बोझ तो बोझिल कर देगा,
हर कदम को मुश्किल कर देगा,
क्यों मुश्किलों को चुनना है?
ख़ाली हो जाओ थोड़ा,
इक सागर से मन भरना है,
संसार को पीछे छोड़ना है,
अस्तित्व को असीम करना है।
-मीनाक्षी सेठी
Wings Of Poetry
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दामन में छुपा ले रात मुझे
फिर चाहे सवेरा हो न हो
तेरे तम में ही मैं घुल जाऊँ
ये चाँद सितारे हों न हों
क्या करना मुझे इस जगमग से
ये अस्तित्व रहे या मिट जाए
मैं श्याम वर्ण में रंग जाऊँ
तेरा रंग यूँ मुझ पर चढ़ जाए
मैं सो जाऊँ तेरे आंचल में
कोई भोर उठाने न आए
यूँ अपना ले ऐ रात मुझे
फिर गैर कोई न कर पाए
दामन में छुपा ले रात मुझे
मैं स्वप्न सुहाने देख सकूँ
जीवन भर की अधूरी नींदों को
तेरी ममता से मैं सेक सकूँ
अब शीतल कर दे इन नयनों को
इस दर्द को अब तो भेद सकूँ
दामन में छुपा ले रात मुझे...
-मीनाक्षी सेठी
Wings Of Poetry
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Going through these lines written in small wonder in my hands it feels as if I'm diving deep in life's dark secrets.
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खुली आँखों से जब कभी ख्वाब देखती हूँ
ख्वाब के उस पार खुद को आज़ाद देखती हूँ
गलियाँ बचपन की और मकान हसरतों के हैं
हर ओर खिड़कियों से झाँकते आफताब देखती हूँ
देखती हूँ झुर्रियों से सजे मुलायम हँसते से चेहरे
चेहरों में कई दशकों की छिपी दास्तान देखती हूँ
छतों पर अठखेलियाँ करती अलहड़ सी जाड़ों की धूप
धूप में अंगड़ाई लेते हुए सहन और दालान देखती हूँ
छेद वाली नन्ही सी जेबों में भर खनकती सी हँसी
राह में बिखराते दौड़ते बचपन की शान देखती हूँ
बेतरतीब से बिखरे बालों से खेलती फाल्गुन की हवा
हवा संग झूमते मस्त दिल के बेबाक अरमान देखती हूँ
जून की रातों में चाँद-तारे लिए मुस्कुराता सा आसमान
उसमें गुम आने वाले कल को ढूँढते नयन हैरान देखती हूँ
फिर देखती हूँ फिसलकर आ पहुँचा है जो आज
इस आज में अब खुद को कुछ गुलाम देखती हूँ
कहीं हसरतों की किरचियाँ कहीं उम्मीदों की मांग
इन्हीं में उलझा नाकाम परेशान इंसान देखती हूँ
खुली आँखों से जब कभी ख्वाब देखती हूँ
ख्वाब के उस पार खुद को आज़ाद देखती हूँ
Meenakshi Sethi #wingsofpoetry-
मेरे इशक़ की मुमताज़,
ये लेखनी मेरी आवाज़
ये कलम स्याही बिखराती हुई,
बयाँ करती है दबे से राज़
खुद गढ़ दिए पन्नों पर तेरे,
ऐ ज़िंदगी कितने ही ताज़
संगमरमर से चमकते हैं अब,
वक़्त ने जो छोड़े थे दाग
इबरत यही हासिल की कल से,
संवारे क्यों न अपना आज
क्यों सिसकना गुनगुनाते हुए,
नामुकम्मल कहानियों के राग!
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-
मानवी
मैं टूटती हूँ हज़ारों बार फिर जुड़ जाती हूँ बिना आवाज़
ये टूटने और जुड़ने की प्रक्रिया घटती है बार-बार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक चट्टान ।
मैं डूबती हूँ गहन अंधेरों में और छटपटाती हूँ बेहिसाब
फिर लौट आती हूँ किनारों पर थक-हार; तार-तार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक परिपक्व तैराक ।
मैं ओढ़ती हूँ तन्हाइयाँ हज़ारों की भीड़ में चलते हुए
खुद से ही करती हूँ वार्त्तालाप दिन-रात
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं कितनी बेज़ार ।
मैं बहती हूँ समय धारा में अनथक करती अथक प्रयास
और टकराती हूँ निर्मम लहरों से चुपचाप
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं एक युयुत्सु नाकाम ।
मैं देखती हूँ सहती हूँ फिर अनदेखा, अनसुना कर हर वार
मुस्कुराकर चल देती हूँ करने एक और क्षितिज पार
और सुनती हूँ; कि हूँ मैं अक्षम्य कुलांगार ।
मैं कहती हूँ; सुनो मेरी भी दुनिया है तुम्हारी ही दुनिया के साथ
और वो हँसते हैं ज़ोर से ठहाका लगाकर बेहिसाब
और जान लेती हूँ; कि हूँ मैं एक अतीन्द्रिय विचार।
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-
शायद ये लफ्ज़ आखिरी हों गज़ल आखिरी हो,
न जाने कि कौन सा अब सफ़र आखिरी हो!
हर इम्तिहान पर इम्तिहान दे कर ये सोचा,
काश कि अब ये इम्तिहान आखिरी हो!
बहुत रुस्वा हुए बहुत तड़पाए गए जब,
तब तड़प कर बोला मन ये तड़प आखिरी हो!
क्यों सख्त जान है तू, क्यों बेमुरव्वत है ऐ दिल,
क्या जाने कि कब तेरी धड़कन आखिरी हो!
हम भी दर्द को और न उतारेंगे कलम से,
बशर्ते कि ज़माने का ये सितम आखिरी हो!
मीनाक्षी सेठी
- Wings Of Poetry-