रात का अफसाना
एक कहानी लिखी थी अपनी,
लिख कर जाने कहाँ भूल गई,
बीते हुए सब साल खँगाल लिए,
लेकिन कहीं भी नहीं मिली,
बहुत सोचा, लिखा क्या था!
पर यादें धुँधली पड़ गईं,
खैर फिर लिख लूँगी कुछ नया,
कहानी भी अपनी है, कलम भी,
बस यकीं की कमी है,
कल ही खरीद लूँगी थोड़ा वो भी,
रात यही सोचते गुज़रेगी,
क्या-क्या लिखना है नया...
- Wings Of Poetry