पक्की रात का कच्चा सपना,कैसे इन आँखों में अटका?पलकें खुलीं तो बाहर लपका, सर्द सुबह के कोहरे ने झपटा,धुँआ-धुँआ सी धुँध में लिपटा,फैल गया फिर कभी ना सिमटा! - Wings Of Poetry
पक्की रात का कच्चा सपना,कैसे इन आँखों में अटका?पलकें खुलीं तो बाहर लपका, सर्द सुबह के कोहरे ने झपटा,धुँआ-धुँआ सी धुँध में लिपटा,फैल गया फिर कभी ना सिमटा!
- Wings Of Poetry