4 OCT 2019 AT 1:32

नींदे मेरी और ख्वाब तुम्हारे
दोनों ही झूठे निकले
जैसे-जैसे रात गहराई
आँखों से दोनों फिसले
झूठे निकले इकरार सभी
जो बिन शब्दों के किए गए
और झूठे निकले इंतज़ार सभी
जिनमें शामें सब गुज़रीं
झूठी निकलीं वो दो आँखें
जिनमें सच्चाई दिखती थी
और वो सब मीठी सी बातें
जो जन्नत जैसी लगती थीं
झूठे निकले वो साल सभी
जो हमने साथ बिताए थे
सब झूठा था तो कैसे करूँ यकीं
बदल जाना भी तेरा झूठ नहीं
बस यही सोच कर मैंने अभी
दिल को झूठी एक तसल्ली दी।
ना तुम गलत ना मैं सही
हम दोनों ही झूठे निकले ।


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Meenakshi Sethi, Wings Of Poetry

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