25 SEP 2019 AT 4:42

मेरी रूह तुम्हें
कब भेजा गया इस महफिल-ए-क़फ़स में
और किस गुनाह के लिए
कितने लिबास तुम बदल चुकी
कितने बाकी हैं आखिरी कफन के लिए
कितनों से मिलीं? किस-किस से बिछुड़ी
कितने बिछोड़े हैं अभी बकाया किये
याद तो होगा नहीं
फिर क्यों पशेमान हो
खुद को तमाशा किये
गर चला गया अंजुमन से
मजबूर कोई
वो भी बेबस ही होगा
आसमां के फरमानों तले
ये जन्नत नहीं जहाँ कोई गम ही न हो
ये तो आज़माइशें हैं, खुदा से एक होने के लिए
तो गमों को भी इश्क से नवाज़
कर सजदे
खुशियाँ तो जला ही लेंगी इनायतों के दिये

- Wings Of Poetry