12 SEP 2019 AT 2:57


क्यों नहीं
वक़्त की धुंध में धुँधला जातीं ये यादें तेरी,
अब तो एक ज़माना हुआ तुझसे बिछड़े हुए,

क्यों नहीं
बस चलता मेरा, मेरी चाहत पर,
तुझको चाहने का तो मुझे अब हक भी नहीं,

क्यों नहीं
तन्हा मैं मेरी तन्हाई मैं,
क्यों चुपके से तुम यादों में उतर आते हो?

क्यों नहीं
खो जाते हम हज़ारों में,
दिल तुम्हें ढूँढ ही लेता है क्यों ख्यालों में?

क्यों नहीं
मिटता सांसों से नाम तेरा,
अब मैं भी जीना चाहूँ बस अपने लिए।

क्यों नहीं
मिटती ये सज़ा, तुम्हें चाहने की,
या तुम्हें चाहना थी मेरी ही खता?

क्यों नहीं
जवाब मिलते हैं इन सवालों के,
क्यों नहीं थमता, इस क्यों नहीं का सिलसिला?

- Wings Of Poetry