ख्यालों को जब वे फिसल कर यादों की पुरानी बस्ती में भटक जाएँ,
जहाँ धूल जमे बक्से में कई किस्से कहानियां बंद हैं तरो-ताज़ा से,
वहीं कहीं मासूम सी नोक-झोंक पड़ी है नाक फुलाए,
और वहीं खिलखिलाहटें खिलखिला रहीं हैं बेपरवाह,
बिना किसी चिंता के खुशियों के जाल बिछाए,
वो भागना इक-दूजे के पीछे बिना ही कारण, झांक रहा है अलहड़ सा मंद-मंद मुस्काए,
उधर खाट पड़ी है तिरछी सी दीवार से टिकी खेल-खेल में छोटे से एक घर को बनाए,
रस्सी लंबी सी टंगी है एक खूटे से, कद को लंबा करने का करती हुई उपाय,
और नादानियाँ भी शरमा सी रही हैं बेचारी, कहीं किसी को उनकी कोई खबर न लग जाए,
जैसे-जैसे करीब आने लगता है बचपन, अचानक से आज में मेरी आँख खुल जाए,
और ठोकर लग जाती है अक्सर, जैसे ही सुनहरी सपनों से हम जाग जाएँ ।- Wings Of Poetry
25 SEP 2019 AT 3:33