जब तक आस-पास अपनों की महफिल नहीं होती,
और महफिल में जमकर हड़कंप नहीं होती,
जब तक किस्से खिलखिलाकर सुनाए नहीं जाते,
और गीत दो-चार मिलकर गाए नहीं जाते,
जब तक नानी-दादी की झिड़कियाँ नहीं होतीं,
और माँ के हाथों की नरम रोटियाँ नहीं होतीं,
जब तक कोई रूठे नहीं और उसे मनाया नहीं जाए,
और मनाकर फिर से उसे सताया नहीं जाए,
जब तक पुराने दोस्तों से बातें नहीं होतीं,
और बात करते हुए रातें नहीं होतीं,
जब तक जिंदगी यूँ खुलकर जी नहीं जाती,
सच में तब तक उदासी कम नहीं होती...
- Meenakshi Sethi #Wings of Poetry
2 OCT 2019 AT 5:52