जब एक-एक कर छिन रहे थे अपने,जब तार-तार हो रहे थे सपने, जब मन का विश्वास लगा डगमगाने, जब संबल भी लगा लड़खड़ाने,तब सोचना पड़ा...जिंदगी आखिर तू क्या चली सिखाने ? - Wings Of Poetry
जब एक-एक कर छिन रहे थे अपने,जब तार-तार हो रहे थे सपने, जब मन का विश्वास लगा डगमगाने, जब संबल भी लगा लड़खड़ाने,तब सोचना पड़ा...जिंदगी आखिर तू क्या चली सिखाने ?
- Wings Of Poetry