जब भीड़ में तन्हा होते हैं,
और याद तुम्हें हम करते हैं,
जब शब्द खामोश हो जाते हैं,
और हम बेबस रह जाते हैं।
अपनी परछाईं से बातें करते हैं
जब अपने ठगने लगते हैं,
और लफ्जों से धोखे मिलते हैं,
जब दुख से दिल भर आता है,
और आँखें धुँधली हो जाती हैं।
अपनी परछाईं से बातें करते हैं
जब रातें लम्बी लगती हैं,
और नींद कहीं खो जाती है,
सब ख्वाब जागने लगते हैं,
और दिल बेकाबू हो जाता है।
अपनी परछाईं से बातें करते हैं
जो दीवाने से लगते हैं,
पर कोई कहाँ पढ़ पाता है,
जो बयां वो नहीं करते हैं,
और परछाईं वो भी बन जाते हैं, जो...
- Wings Of Poetry
24 SEP 2019 AT 23:29