आइने की तरह
तो मुझमें अपना ही अक्स तुम पाओगे
जो देखोगे मुझे तौलने के लिए
तो तोहमतें ही महज़ लगाते जाओगे
मैं खुदा तो नहीं जो कमी मुझ में न हो
पर इंसान समझोगे तो मुझको समझ पाओगे
मुझे बुत न बना पूजने के लिए
टूटा अगर तो मिट्टी में मिला जाओगे
मुझे रहने दे आम सा बनकर यहीं
तभी मुकम्मल जान मुझको पाओगे
तकलीफ़ों को बयां कभी करने भी दे
सुनोगे तो तुम भी समझ जाओगे
ज़र्रा हूँ ज़र्रे में ही मिल जाऊँगा
मेरे जाने के बाद ये जान पाओगे
गैरों से अपने बहुत हैं यहाँ
अपना समझोगे तो रूह-ए-सुकून दे जाओगे।
- Wings Of Poetry