एक वक्त ने आधारशिला रखी थी एक रिश्ते की
कुछ बे वक्त खत लिखे थे उन दरख्तो पर उनके
कभी मिटाया गया था उन्हें एक उंगलियों से
कुछ निशान थे वहां पर उन खूबसूरत पलों के
कुछ आजादिया सी लगती थी उनके आने से
एक तूफ़ान सा उठता था उन पतझड़ों के पत्तों से
सुर्ख हो जाती थी वो टहनियां भी अक्सर
शोक मनाते थे वह वृक्ष भी उस मिलन से अक्सर
एक बूंद की आस में प्यासे थे वो इस क़दर
मुख मोड़ कर बैठी थी वो बैरी सी बारिश
रुख बदलेगा शायद एक दिन उन फिजाओं का
रश्क करेंगी वो हवा उस मिलन की बेला पर
बूंद जब टकराएगी एक कोमल सी कली पर
स्पर्श होगा वो एक सुनहरा फिर हस्त से हस्तो का
रंक फिर बनेगा एक दिन राजा कहानी का
कोमल सी कोपल को यह एहसास प्यारा है
हरित होती हुई दरखतों का राज़ न्यारा है...✍️
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