तुम मेरे अंजुली में भरे
गंगाजल के समान हो
जिसे हांथों में सहेज कर
मैं तपस्या किये जा रही हूं
अब मैं नहीं चाहती इसे अर्पण कर देना
क्यूंकि,
मेरी हथेलियाँ अब
सोख लेंगी तुम्हारी हर बूँद
और आत्मा को सिंचित कर देंगी
तब तक बन के रहना मेरी हथेलियों में
मेरी भाग्य रेखा
कर प्रेम के इस तपस्या के पूर्ण होने पर
मैं अर्पित कर दूंगी अपनी आत्मा संग
तुम्हारा पवित्र प्रेम
अपने इष्ट के चरणों मे
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Describes me
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मां भोर में उठती है कि
माँ के उठने से भोर होती है
हम कभी जान ही नही पाए
बरामदे के घोंसले में
बच्चों संग चहकती गौरैया
मां को जगाती होगी
या, कि?
माँ के उठने की आहट से
भोर का संकेत कर देती होगी गौरैया
हम लगातार सोते है
माँ के हिस्से की आधी नींद
माँ लगातार जगती है
हमारे हिस्से की आधी रात
हमारे उठने से पहले ही
धुल चुके होते हैं बर्तन
बुहारा जा चुका होता है आंगन
गाय रंभा रही होती है चारा खा के
गौरैया के नन्हें बच्चे चोंच खोले चिल्ला रहे हैं
औऱ मां फूंक रही है चूल्हा
पलके खुलते ही
माँ का मुस्कुराता चेहरा सामने होता है
या, कि?
मां है हमारा सूरज
या की चहकती गौरेया ही माँ है?
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अगर किसी के साथ , सात फेरे लेना विवाह है,
तो हाँ, मेरा तुमसे विवाह नहीं हुआ
यदि किसी के नाम का सिन्दूर लगाना विवाह है,
तो हाँ, मेरा तुमसे विवाह नही हुआ,
सामाजिक रस्मों रिवाज़ निभाना यदि विवाह है,
तो हां, मेरा तुमसे विवाह नही हुआ,
परन्तु यदि , किसी एक के साथ प्रेम निभाना विवाह है
तो मेरा विवाह तुमसे ही हुआ है
यदि किसी के लिए आत्मा का समर्पण विवाह है
तो मेरा विवाह तुमसे ही हुआ है
यदि बिना , दृश्य बन्धन के भी जीवन पर्यंत किसी के मोह में बंध जाना विवाह है
तो मेरा विवाह तुमसे ही हुआ है
मैं नही चाहती,
तुम निभाओ विवाह की रस्में ,
बस निभाते रहो मुझसे वैसा ही प्रेम
जिसमें किसी सामजिक रिवाज़ो की जरूरत ना हो.......
-प्रिय❤️
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मैं बंध जाना चाहती हूँ तुमसे ,
एक ऐसे आलिंगन में
जहाँ दुनिया भर का सारा प्रेम सिमट जाता हो
एक आलिंगन जिसमे सुकून हो
दुनिया भर की सारी सकारात्मकता का
जो इस विलगाव के भय की पहुंच से दूर हो
एक आलिंगन जिसमें मैं सिमट जाऊं तुममे
और तुम्हारे अस्तित्व से ही पूर्ण हो जाऊं
वैसे ही जैसे ये सृष्टि समायी है ,पूर्णता के युक्त
ईश्वर के आलिंगन में
एक आलिंगन जिनसे समेट लूँ मैं तुम्हारी सारी पीड़ाएँ ,
औऱ भर दूं सारा रिक्त ,अपने प्रेम से
अपने समर्पण से
ऐसे ही आलिंगनबद्ध समर्पित हो जाऊं बपने इष्ट के चरणों में
एक सम्पूर्ण कृति बन कर
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एक मंज़िल की ओर बढ़ कर
वापस आने की ज़िद
हिम्मत चाहती है
खुद से ही खुद में
लौट आने की ज़िद
हिम्मत चाहती है
थपकियाँ दे कर सुलाए हुए
वेदना के सैलाबों को
एक आलिंगन में टूट जाने की ज़िद
बस , हिम्मत चाहती है
रेत के टीलों सी भर-भराकर गिरने वाली
फिर से विश्वास पर, टिकाने की ज़िद
हिम्मत चाहती है-
हां जानती हूं मैं
तुम मोती ढूंढने निकले हो
और जिसकी तस्वीर देखी है तुमने,
वो बेहद खूबसूरत मोती है
लेकिन तुम नही जानते
मोती से पहले सीप को ढूंढना होता है
और तुमने तो सीप देखा ही नहीं
और ये भी जरूरी नही की जो सीप मिले तुम्हें
उन हर सीप में मोती हो
जरूरी ये भी तो नहीं
कि वो तुम्हारे तस्वीर सी ख़ूबसूरत हो
लेकिन तुम रुकना नहीं...
ढूंढना तुम...
बस एक बात याद रखना मेरी
जो भी मिले जसकी क़द्र करना ..-
तुम्हारे हृदय तक का ये रास्ता
ये ना पूछो की कितनी कठिन राह है
एक पल में गुजारी हैं सदियां कई
आगे होना है क्या ये कहानी ही है,
इस भरम को मिटाने में उम्रें कटी
प्रेम का शून्य से ही तो आधार है,
ये छद्म है या है ये चरम मोह का
या समर्पण का मेरे ये अधिकार है
तुम लिखे ही नही भाग्य के लेख में
फिर भी तुम बस मेरे हो ,यही चाह है
कहने को चंद कदमों के ये फेर था
मिलों चलते हुए पर ये रातें कटी
प्यास है भाग्य में , पर है पानी नहीं
हर कदम पर बिछड़ने की बस दाह है,
तुम्हारे हृदय तक का ये रास्ता
मत ये पूछो की कितनी कठिन राह है....-
इस जनम में ना सही ,
तो किसी और जनम ,
इस दुनिया मे ना सही ,
तो इस अनन्त आकाश के पार ,
इन तमाम बंधनों से परे
इस संसार के शून्य में विलीन होने से पहले
एक दिन होगा , केवल मेरा और तुम्हारा
और उस एक दिन में मैं तुम्हे सदियों का प्रेम कर लूंगी-
तुमने जीना सिखाया है मुझे
तुम्हारे लिए रोना .......
मुझे नही आता...........-