घर नहीं होता कोई बेटियों का,
मायके और ससुराल की दहलीज होती,
एक को लांघ कर दूसरी दहलीज पर जाती,
पर कभी वो दहलीज उनकी ना बन पाती,
मायके में कहते बेटी पराई होती,
ससुराल में कहते पराये घर से आई,
इन्हीं दो दहलीजों के बीच बंध सी जाती,
अपनी पहचान ढूंढते-ढूंढते जिन्दगी निकल जाती,
पर फिर भी ना वो अपने घर का पता लगा पाती,
अपने अस्तित्व को खोकर जो उफ्फ तक नहीं करती,
सम्मान की चाहत में आत्मसम्मान भी खो देती,
अपने घर की तलाश में वो उम्रभर भटकती,
पर हर बार वो अपनी कोशिश में नाकाम होती,
सच ही तो हैं कि बेटियों का कोई घर नहीं होता,
और एक सच बिना बेटी के कोई घर घर नहीं होता।।
तेरे बिन तेरे संग
राधे कृष्ण
#मीनू©✍️- Meena soni
17 JUL 2018 AT 22:57