जब भी जीवन की राह में डगमगाती हूँ,
संकोच की छाया मन पर छा जाती है ।
तभी एक हाथ मेरी अंगुलियों को थाम लेता है,
वह हाथ मेरे प्यारे पिता का होता है।
जो बिना कुछ कहे हर मोड़ पर भरोसा दे जाते हैं,
और संकट की गहरी राहों में भी
पीठ पर हौसला थपथपाते हैं,
जीवन जीने की कला और संस्कारों की बुनियाद,
हर दिन, हर पल, हर डगर,
वे मुझे उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं,
और अपने अनुभवों की रोशनी से,
मेरे मन के अंधेरे को दूर करते हैं।
पिता की परछाई में एक फरिश्ते को देखा है,
जो दिल के उस कोने में "मैं हूँ" का एहसास है।
अडिग खड़े हैं वे हिमालय की चोटी की तरह,
और भीतर शीतलता है हिम श्रृंखला की तरह।
थके हुए पथिक की तरह,
मैं अक्सर उनकी छाया में बेफ़िक्र हो जाता हूँ,
सारी मुश्किलात—थकान भूल जाता हूँ।
पापा जैसा जीवन में होगा कौन?
पहचान मेरी तुमसे, प्रेरणा भी तुम हो ।
I ❤️ U Papa
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चल चले पहाड़ो मे कहीं दूर
जहां हो बस तू - मैं ....
और पहाड़ो का सन्नाटा-
ये जो तेरी खुशबू है,
मुझको हर पल महका रही,
तेरे इश्क़ की बारिश में,
मेरी रूह भीगती जा रही।-
मेरी बोली से, किसी व्यवहार से,
या मेरी करनी से जो पहुँचे ठेस,
दुःख न पहुँचे कभी किसी को,
हे नाथ मेरे ऐसा वरदान दो।
मेरे भीतर अज्ञान भरा है,
क्षमा करो प्रभु मेरी भूल को।
क्षमा करूँ, क्षमा माँग सकूँ,
मुझसे हो जाए जो कोई चूक।
अहम् भाव को त्याग सकूँ,
गलत विचार न मन में आएँ।
दीनों की सेवा सत्कर्म करूँ,
मुझसे कोई पाप न होने पाए।
मन को निर्मल करती जाऊँ,
प्रभु-भक्ति को जान सकूँ।
सत् मार्ग पर चल सकूँ,
किसी में भेद न करूँ कभी।
प्रभु! शरणागति ले लो मुझको,
तारण तुमसे चाहूँ मैं।
गुरुवर, मार्ग दिखाओ मुझको,
मैं अज्ञानी, नादान हूँ प्राणी।
मोह-माया में फँसी हुई,
अंधकार में डूबी हुई,
शरण तुम्हारी आई हूँ।
तुम ही नैया पार लगाओगे,
जैसे सबकी पार लगाते हो।
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शिव से करती आस हूँ,
शिव ही लगाएंगे पार।
डगमगाती नौका डूब रही,
बीच भँवर कही मजधार ।
चरणों में हूँ मैं समर्पित,
मेरे साथ है भोलेनाथ।
त्रिलोकी के ये रक्षक हैं,
सदा रखना सिर पे हाथ।
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बस तुझको माँगू रब से
और दूँजा न कोई❤️
जिस पल में तू न हो
फिर तो सांसे भी नही❤️-
चल दूर तक फलक पर
जहाँ न कोई खलल हो
तेरे मेरे पल हो
आ चुराले पल वो
मैं सुनूँ तुझे और
तू सुने बस मुझे
चाँद सितारों के दरमयां
सागर के भी होके पार
जहां मै - तुम
और बस
हो हमारे ये जज्बात-
वो तेरी नजरों की शरारत में,
लबों पे ठहरी मीठी सी बातों में ।
तेरी मासूम सी नाराजगी में,
और खिलखिलाती धूप में ।
हर बार तुझे मनाने में,
कभी खुद से रूठ जाने में ।
मेरा इश्क ये कहता है सदा,
तू ही तो है मेरी दुआओं का असर।
तेरे हर रंग में, हर अदा में,
मेरा इश्क बस तुझमें ही बसा है।
तेरे बिना ये शामें सूनी सी लगती हैं,
तेरे साथ होने से सब आसान हो जाता है।
चलो फिर से शुरू करें वो प्यार भरी बातें,
तेरे मेरे बीच फिर से हो वही कहकही बेतुकी बातें।
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धर्म, न्याय और वीरता की अनुपम प्रतिमा:
गौरवशाली वीरांगना वह,
शत्रुओं को धराशायी किया,
सनातन धर्म का स्वर्णिम अध्याय,
माता अहिल्याबाई होलकर थीं।
उनकी यह गाथा अमर रहे,
हर युग में प्रेरणा बनती रहे,
नारी शक्ति, धर्म, न्याय, वीरता—
रानी अहिल्या की अमर छाया।
धर्मध्वजा को थामे माँ चलती,
रणचंडी-सी जब आगे बढ़ती,
शत्रु दल सब थर्राए उनके,
साहस से भय भी शरमाए।
मालवा की माटी की शान,
जन-जन का गर्व, अभिमान,
अदम्य साहस, करुणा की मिसाल,
रानी अहिल्या—अमर महान।
प्रजा के सुख-दुख की सखी बनीं,
हर पीड़ित की थीं वह छाँव घनी।
तीर्थों का नवजीवन रच डाला,
काशी, गया, सोमनाथ,
मंदिरों की श्रृंखला से सजी,
धर्म-संस्कृति को दी नवीन बात।
रणभूमि में जब छाया संकट,
स्वयं घोड़े की थामी लगाम,
शत्रुओं को रण में पछाड़ा,
मालवा की रक्षा का व्रत निभाया।
तलवार के साथ सीखी नीति की धार,
राज्य को समृद्धि की राह दिखाई ।-
कलम की नोक पर चमकता है सत्य,
शब्दों की धार से बदल जाता है पथ।
चौथे स्तंभ की ये अडिग पहचान,
अंधेरों में जन्म लेती उम्मीद की लौ।
जनता की पीड़ा, उम्मीदों की आवाज़,
कलम बनती है क्रांति की आगाज़।
हर स्याही की बूँद में छुपा है विश्वास,
लोकतंत्र का प्रहरी, निडर और खास।
सत्ता के गलियारों में जब सन्नाटा छाता,
कलम की गूंज से ही सच बाहर आता।
ना बिकती है, ना कभी झुकती है,
वो सच के लिए हर खतरा उठाती है।
आज पत्रकारिता दिवस पर हम करें प्रण,
उन वीरों को करें हम सच्चा नमन।
जो कलम की ताकत से जगाते हैं चेतना,
सत्य के प्रहरी, समाज के प्रहरी बनते हैं।
उनकी निष्ठा, साहस और समर्पण को,
हम दिल से करते हैं हार्दिक आभार।
जो बिना डर के हर सच को दिखाते हैं,
लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं।
ये कलम है, न केवल हथियार,
बल्कि परिवर्तन का सशक्त आधार।
हर जन की आशा, हर मन की आवाज़,
लोकतंत्र की रक्षा, इसका एकमात्र राज़।
आओ, हम सब मिलकर करें प्रण,
कलम की ताकत को दें नया जीवन।
सत्य, न्याय और स्वतंत्रता का दीप जलाएं,
कलम की अडिग शक्ति को सदा सजाएं।
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