मदन काला🇮🇳 *बेदिल*🇮🇳   (✍️बेदिल.....🕊️🇮🇳(मदनkaalaa)✍️)
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Joined 28 November 2019


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Joined 28 November 2019

सिर्फ़ शायर हूँ ये तुम्हारी बात झूठ है,
मेरे अच्छे दिनों की सौगात झूठ है।
कभी पामाल हूँ, बेकस हूँ, नादार हूँ मैं,
सड़कों पर भटकता बेरोजगार हूँ मैं,
बहकावे में आ उसे हुक्काम बनाया,
अब अपनी ही नज़र में गुनाहगार हूँ मैं।
उसे ही सबकुछ समझा अपना मगर,
आजकल मेरे वही जज्बात झूठ हैं।
खुलकर मज्ज्मत न करे वो लब कैसे!
ज़ुल्म सितम देखते रहे वो रब्ब कैसे!
व्योपार है,शातिराना हरक़त है उनकी,
भेदभाव जातपांत करे वो मज़हब कैसे?
'बेदिल' वोट के लिए ही ये दिखावे होते हैं,
दलित के घर खाया उसका भात झूठ है।

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इतना न ज़ुल्म सितम कर मुझ पर,
आ जायेगी कभी ग़दर मुझ पर।
थक के राह में कुछ देर क्या बैठा,
तंज करने लगा सितमगर मुझ पर।
जिंदा था तो पूछा न कभी हाल मेरा,
कहता है जड़ेगा संगमरमर मुझ पर।
मेरा सब कुछ उसी की बदौलत है,
बहुत है इनायत ए रहबर मुझ पर।
फुटपाथ पर नादार बच्चे ने कहा,
टिका है साहब मेरा घर मुझ पर।
अभी जुमलों में फसा है वो मेरे,
कर देगा कलम अपना सर मुझ पर।
ख़िलाफ़ उसके बोलने क्या लगा,
रखने लगा 'बेदिल' नज़र मुझ पर।

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~लौटकर आ गया हूँ मैं~
खुद को कहीं छोड़कर आ गया हूँ मैं,
यकीं नहीं कि अपने घर आ गया हूँ मैं।
घर अपना अजनबी सा लगता है मुझे,
गैर को अपना बनाकर आ गया हूँ मैं।
न सहम गुंचा ओ हया ए महबूब मेरे,
बागबां हूँ देख लौटकर आ गया हूँ मैं।
ज़ालिम बस्ति में दिल ए मासूम लेकर,
ज़ुल्म ख़ाक ए सुपुर्द कर आ गया हूँ मैं।
अब न चलेगी तेरी मनमर्जियाँ मुझ पर,
शर्मोहया को दफ़न कर आ गया हूँ मैं।
बैठे बिठाये किसी को कुछ मिला नहीं,
'बेदिल' यही सोचकर आ गया हूँ मैं।
#बेदिल

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नक़ाब हटा सामने आओ कभी तो थोड़ा प्यार करो,
इन बातों में लग्जिस कैसी जो है सो इकरार करो।
वक़्त गया जब अंधी सरकारें न सुनती न कहती थी,
जुल्म ओ सितम की वो तपिश सारी बस्ति सहती थी,
ज़ुल्मी झुक कर पस्त हुआ है जरा देखो इस नजारे को,
यह पल अपनी जीत का पगले अब न यूं तकरार करो।
जो दिल चाहे फसल उगाओ खेत खलिहान तुम्हारा है,
मुल्क किसी एक की जागीर नहीं हिन्दोस्तान तुम्हारा है,
पामाल हुए सब एक बनो आवाज़ उठाओ संघर्ष करो,
दिल से डर भगा दो तुम भी खतरों से आँखें चार करो।
खाल में शेर की भेड़िया ज्यादा दिनों से टिक न सका,
झूठ का माल धरा ही रह गया,थोड़ा भी न बिक सका,
फिर कोई न ज़ुल्म कर सके ये बात अभी तय करना है,
'बेदिल' ये सरकार गिरा कर फिर अपनी सरकार करो।

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मंदिर भी गये होंगे,तुम,मस्जिद भी हो आये हो,
क्या पत्थर में दर हकीकत भगवान वहाँ पाये हो?
बचपन की देखभाल के लाड प्यार परेशानी का,
ता उम्र ख्याल रखना तुम उस अम्मा के साये हो।
कितनी ठोकरें खायी होगी इस मुक़ाम तक आने में,
भीगी दुआओं से उसकी तुम ये हाँसिल कर पाये हो।
कुछ खाया तुमने कि नहीं खाया ये तो केवल माँ पूछे,
बीवी पूछे कितना कमाया औलाद पूछे क्या लाये हो?
भूख नहीं है माँ कहती है जब खाना कम पड़ जाता है,
माँ भूखी है या प्यासी है,कभी पूछ के भोजन खाये हो?
दुआ करती है आज भी 'बेदिल',चाहे कोई कमी नहीं,
तुम्ही भुला रहे हो उसको आज क्योंकर हुए पराये हो?

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तुम शिक्षक हो,शिक्षक की तरह व्यवहार करो,
जड़ पत्थर हैं ये बच्चे, तुम इनका उद्धार करो।
तुम्ही याद किये जाते तो माता पिता के बाद,
तुमसे ही दुनियां नष्ट हुई,तुमसे ही आबाद,
प्रलय और निर्माण तुम्हारी ही गोद में पलते हैं,
आन बान शान से जीने वाला भविष्य तैयार करो।
शिक्षा का तो अर्थ ही व्यवहार परिवर्तन होता है,
पशु से मानव बन जाये खुशहाल जीवन होता है,
ऐसे घर भी हैं जो केवल फाकामस्ती में जीते हैं,
'बेदिल'उस सूने आँगन में शिक्षा का उजियार करो।

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1."एकमात्र अटल सत्य मृत्यु है।ये कभी न कभी सबको आती है।इसलिए जितनी जिंदगी बची है हँसते खेलते बिता दें।"
2."वक़्त हैसियत नहीं हौंसला देखता है।"इसलिए बुरे वक़्त में हौंसला मत खोइए ये भी गुजर जाएगा।
3."जीवन लंबा होने की बजाय महान होना चाहिए।"
__डॉ भीमराव अंबेडकर
#जयभीम_जयभारत

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एक दिया सादा हो इतना ,
जैसे तथागत का जीवन ,
एक दिया इतना सुन्दर हो ,
जैसे फूलों का उपवन |
एक दिया जो भेद मिटाए ,
क्या तेरा क्या मेरा है ,
एक दिया जो याद दिलाये ,
हर रात के बाद सवेरा है |
एक दिया उनकी खातिर हो
जिनके घर में दिया नहीं ,
एक दिया उन बेचारों का ,
जिनको घर ही दिया नहीं |
एक दिया विश्वास दे उनको
जिनकी हिम्मत टूट गयी ,
एक दिया उस राह में भी हो
जो कल पीछे छूट गयी |
एक दिया जो अंधकार का
जड़ के साथ विनाश करे ,
एक दिया ऐसा भी हो , जो
भीतर तक प्रकाश करे ||
*जयभीम*

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अब झूठ के चौकीदारों से आज़ादी चाहिए,
मनुवाद के अत्याचारों से आज़ादी चाहिए।
कारगर न हो उन बातों का क्या मतलब!
ज़ज्बात इन लाचारों से आज़ादी चाहिए।
कब कोई बहन बेटी बेख़ौफ़ घूम पायेगी,
मासूमियत के हत्यारों से आज़ादी चाहिए।
जिसने अलग किया आदमी को आदमी से,
अतीत के ऐसे बीमारों से आज़ादी चाहिए।
एक हो कर मुकाबला करना होगा अब हमें,
अगर दुश्मन के यलगारों से आजादी चाहिए।
बेदिल' ये ख़ामोशी तोड़नी ही होगी तुम्हें,
अगर कश्मकश के गारों से आज़ादी चाहिए।

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फ़ुर्सत नहीं कि ख़ुद से ख़ुद को रूबरू करूँ,
अब कोई नहीं जिसको दिल की ज़ुस्तज़ु करूँ।
दुनियादारी के तूफ़ाँ ने जब ज़ुदा कर दिया मुझे,
ये हवा कहती है ख़ुद को मानिंद ए ख़ुश्बू करूँ।
हर शख़्स पास आ के एक नया ज़ख्म देता है,
यहाँ कौन है मेरा जिसको दिल का माहरु करूँ।
ख़ौफ़ के साये में अब कटने लगे हैं रात ओ दिन,
तू ही बता फिर कैसे मैं ख़ुशी की आरजू करूँ।
एक अरसा हो गया है उस 'बेदिल' से मिले हुए,
दिल कहता है अब तो दिल की बात शुरू करूँ।

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