Md Rizwan Akhtar   (Rizwan Akhtar)
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Joined 20 June 2018


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Joined 20 June 2018
9 FEB AT 6:48

मैं अगर कहूँ के इश्क़ में इश्क़ की जितनी भी ज़बाने है ,
तुम्हारी ज़बान अन तमाम ज़बानों में सब से आला है,
तुम बातें करती हुई जब अपनी खूबसूरत सुर्ख़ होंठो पर हया की तबस्सुम लाती हो उस दिलकशी को देख कर मैं अपने होश खो बैठता हूँ ,
तब ये मंज़र जो दुनिया के ये तमाम नज़ारे है इन नज़रों के अपने अपने जो इशारे है, ये अपने इशारे, अपनी अदाओं को भूल कर तुम्हारी आदाओं में सिमटते चले जाते है ।
और इनकी अपनी जो असल रंग-ओ-रूप है जिसे जाने कब से , सब से , पोशीदा रखे हुए होते है और फ़िर किसी आशिक़ कि माननिंद अपनी असल शक्ल में आ कर दीवाने की तरह तेरे इश्क़ में खो कर रक्स करते है
मेरा जी चाहता है आज इस बात पर झगड़ लू चाँद और सितारों से ये अपने रंग बदल कर तुम्हारे ख़ातिर दिन में रात की ज़िम्मेदारी की तरह फलक मे निकल कर क्यूं नही टिमटिमाते है , आज मुलाकात करूँगा
बागों के सभी फूलों से और मुलाक़ात मुख़्तसर नही बल्कि तवील करूँगा ,
और पूछुंगा उन सभी से तुम्हें कितनी उज्रत चाहिए सिर्फ और सिर्फ उस एक महजबीन कि ख़ातिर अपनी महक बिखेरने को ।
चोटियों से गिरने वाली आबशारों से कहूंगा तुम्हें सिर्फ एक रुक्मणि के लिए ऊँची ऊँची चोटियों से नज़ाकत के गिरना है बलखाते हुए गिरना है ,इठलाते हुए गिरना है , मचलते हुए गिरना है शाम-ओ-सहर गिरना है, ना थमने वाली हद-ओ-फितरत के साथ गिरना है मुसलसल गिरते रहना है।

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20 DEC 2023 AT 23:23


तबस्सुम कि घटा उसके चेहरे कि अदा है
इतनी सादा के ज़ुबा पे उर्दू ज़ुबा रखती है

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26 NOV 2023 AT 19:17

इतनी आसानी भी कहाँ है मर जाने मे ।।
हमें जितना वक़्त लगा तुम तक आने मे ।

मेरे तसव्वुर से लम्बी चली पहली मुलाक़ात
उसने वक़्त ज़्यादा लिया लब तक आने मे ।

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2 AUG 2023 AT 16:18

एक रंग और लिबास को बातिल बता कर
क्या मिल गया तुम्हें सब को क़ातिल बता कर

तस्वीर-ए-मोहब्बत तो इतनी पौनी ना थी
नफ़रतें इससे पहले तो इतनी घिनौनी ना थी

हुजूम पहले चौराहों पर दिखता तो था
मगर बेवजह वो किसी को पिटता ना था

जब से धर्म के नाम पर फासला बन गया है
दो वक़्त की रोटी भी मस'अला बन गया है

ज़ुल्म की और कितनी रवायतें ज़िंदा करोगे
तुम सियासत को और कितना शर्मिंदा करोगे

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24 APR 2023 AT 9:55

तू ये समझता के वो तमस्तर से मुअत्तर कर दे ।
पर ज़िंदगी बाप नही के तेरा सब बेहतर कर दे ।

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26 FEB 2023 AT 0:39

H@Ppy B!rtHd@y..

कुछ दिन ढहरो यहां मोहब्बत बन कर ।
तुम गुज़र कियू रहे हो जवानी कि तरह ।

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14 FEB 2023 AT 9:14

ہر سمت محسوس ہو رہی تیری خوشبُو
میرے ساتھ یہ کیا ہو رہا آج کل ہے ۔

हर समत महसूस हो रही तेरी खुशबू ।।
मेरे साथ ये क्या हो रहा आज कल है ।।

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13 FEB 2023 AT 10:46

चाहत मेरी ये तुमसे बस इतनी सादा है के ।
मैं लब को तेरी चुमूँग लेकिन जबी के बाद ।

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12 FEB 2023 AT 23:30

हम जहाँ है वहाँ तक चाहत तो उठ कर आये।
कोई सदा, कोई आहट तो उठ कर आये ।।

मुझे हँसना है मगर देख कर आईना ।।
शर्त ये के कोई मुस्कुराहट तो उठ कर आये

ख़ुदा डुबोयेगा कज़्ज़ाक़ कि कश्ती को भी।।
तुफा की शक्ल में लानत तो उठ कर आये ।।

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31 JAN 2023 AT 23:08

वही आदत पुरानी हर शब तुम पे मरने कि ।।
तेरे इश्क़ में हम अब तक बे पैरहन है दोस्त ।।
क्या ? किसी आज़माइश से ख़त्म होगी ये ।।
क्या इतनी कमज़ोर ये दिल कि लगन है दोस्त?

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