" जमीन पे गुल फलक का हर सितारा मुस्तफा का है
जहां में जो भी है सारा का सारा मुस्तफा का है
आसमान पे चांद अपना सीना चीर कर कहता है
मैं टुकड़े क्यूं ना हो जाऊं ईशारा मुस्तफा का है"-
चन्द सिक्कों में कहां तुमको वफा मिलती है
बाप के हांथ भी चूम लो तो दुआ मिलती है
तुम मोहब्बत भरी निगाहों से उन्हें देखो यारो!
उनकी मुस्कुराहट में जन्नत की अदा मिलती है..-
हर सीम्त बरसती हुई रहमत की झड़ी है
ये सरवर-ए-कौनैन की आने की घड़ी है
जितनी भी तलब हो मेरे सरकार से मांगो
अल्लाह की रजा आपके चौखट पे खड़ी है-
सुनते हैं कि महेसर में
फिर जलवा गरी होगी,
क्या साख-ए-तमन्ना
फिर इक बार हरी होगी..
_ बेदम शाह वारसी-
गर मैं ये कहूं मैने नए रस्ते निकालें है
वो कहेता है उसके सारे मंजर देखे भाले है
इरफ़ान अपनी समझ में तो बस इतनी सी बात आई
जो टूटे दिल संभाले हैं वही अल्लाह वाले हैं..-
ये धूप तो हर रूख से परेशां करेगी
कभी अपनी गलियों से बेगाना होकर तो देखो
यूं किस तरह कटेगी कड़ी धूप का सफर
कभी तसव्वुर में ख्याल-ए-मैखाना लेकर तो देखो....-
“ना जाने कौन सी शोहरत पर इंसान को नाज है, जबकि आखिरी सफर के लिए भी इंसान औरों का मोहताज है”
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चलते रहेंगे काफिले मेरे बाद भी यहाँ,
एक सितारा टूट जाने से फलक तनहा नहीं होता ...-
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग से
ईस घर को आग लग गई घर के चराग से...-
"एक ईंट और गिर गई
दीवार-ए-जिन्दगी से..
नादान कह रहे हैं
नया साल मुबारक हो.. "-