सुनो..
बोलो आज क्या लिखूं
काली घटाएँ लिखूं
या तुम्हारी प्रति अपने डायरी में लिखे
वही भावनाएँ लिखूं...
तुम संग मुलाकातें लिखूं
या संग बिताए पल.
या फिर तुम्हारी पहली स्पर्श से हुए झनझनाहट लिखूं
या ख्यालों की कल्पनाएं लिखूं....
तुम्हारी मोहब्बत का इज़हार लिखूं....
वो बच्चों सी खुशनुमा लिखूं....
या ड्राफ्ट में परी अनकही अर्जियां लिखूं....
हमारी हँसती हुई खिलखिलाहटें लिखूं
तुम्हारी यादों के नन्हें-नन्हें अंकुर,
और उनके साथ ही पैदा हुई
जमाने भर की बातें लिखूं...
हर सुबह का GM लिखूं....
या देर रात का GN लिखूं...
बोलो.. आज क्या लिखूं....??-
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आँखों से भी लिखी जाती है, द... read more
क्या खास था उन दिनों ,जो आज नहीं..!
उन दिनों का एक चित्र मात्र, चलचित्र सा महसूस होता है आज भी....
कितनी साधारण सी है ना ये तस्वीर....
मगर इस तस्वीर की सादगी,आज भी दिल को सुकून देती है....
उस वक्त फिज़ाओं में जो महक थी,आज वो संभव ही नहीं
निर्धारित समय पर मौसमों का बदलाव,आज बेवक्त होने लगा है....
शायद ये मौसम भी व्यस्त हैं खुद में ही
आज बारीशें भी नाराज़ हैं हम से, और शायद नाराज़ ये धरा भी है.....
कितनी महक उठती थी मिट्टी इस धरा की
बारिश की हल्की बौछार से भी.....
आज भी वो सोंधी-सोंधी खुशबू बहुत याद आती है...
मेहनत से उगाए,पीसे गये गेहूं की बनी रोटियों की महक...
आज सिर्फ सोचकर ही वो स्वाद याद दिला देती है।
मिट्टी से बने घर, सादगी से सजे होते थे....
बहुत बहुत सुकून है इस एक तस्वीर में...
एक तस्वीर मगर सम्पूर्ण यादें उस दौर की....-
तो तुम उनके याद
में फुल के पतियों को तोड़ा करो
ताकि वो टूटी हुई पतियां उन्हें बेचैन करें
जिनके याद में वो टूटा है-
अगर होती,
चौराहों को भी
कोई चौखट,
तो,
मिल जाती
उम्मीद में खड़ी
कईं स्त्रियाँ
प्रतिक्षा में लतपथ...!
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एक दिन सूरज बन कर
आसमान पर छा जाना है
बस तुम ए नही सोचना
चलने से पैरों में छाले आ जाता है-
[ कई महीनों तक सिर्फ देख कर प्रेम करना ]
मूझें पता था वो मूझें देखती है
उसकी नजरो में प्रेम है
पर कभी इज़हार नही किया
दौर कुछ ऐसा आया जब इजहार
किया तो उसने कहा
आप को अभी प्रेम हुआ
मैं तो कई महीनों से आप के प्रेम का
इंतजार कर रही हूं-
मैं तुम्हे लिखना चाहता हूं।
ऐसे,जैसे किसी ने किसी के बारे में आजतक न लिखा हो!
मैं तुम्हे दुनिया की सारी उपमाओं से नवाज देना चाहता हूं!
और सोचता हूं कि तुम मेरी पंक्तियों को उसी भाव से पढ़ो, जिस भाव से मैं लिखता हूँ।
मुझे नहीं चहिए
उस पंक्ति के बदले तारीफ, मुझे चाहिए बस तुम्हारी मुस्कान!
मैं चाहता हूँ तुम हर शाम मेरी पंक्तियों के उसी तरह इंतजार करो जैसे एक माँ अपने बेटे या नवजात पक्षी अपनी मां का करती हैं।
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