'अंतिम ऊंचाई'
कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,
हमारे चारों ओर नहीं।
कितना आसान होता चलते चले जाना
यदि केवल हम चलते होते
बाक़ी सबरुका होता।
मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को
दस सिरों से सोचने और बीस हाथोंसे पाने की कोशिश में
अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।
शुरू-शुरूमें सब यही चाहते हैं
कि सब कुछ शुरूसे शुरू हो,
लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।
हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती
कि वहसब कैसे समाप्त होता है
जो इतनी धूमधामसे शुरू हुआ था
हमारे चाहने पर।
दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—
जब तुम्हें लगेगा किकोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में
जिन्हें तुमने जीता है—
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे
और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंततक हिम्मत न हारने में।।
'कुवर नारायण'-
ऐ दिल !
ईमान की तरह
रखना सम्भाल कर
उस हृदय (इंसान) को
जो बगैर कहे समझ ले
तेरी जज़्बात को ।।
- मो० आशिक-
बातों ही बातों में
तुमसे बे मतलब की
बातें निकल आती है,
लेकिन उन्ही बिन मतलब की
बातों से दुनिया मेरी भी
सुंदर लगने लगती है ।
मैं तुमसे यही बात
कहना चाहता हूँ कि
ये बातें जिन्हें
तुम कहते हो 'बे मतलब' की
वजह है किसी की
'जीने' की
मुस्कुराने की।।
- मो० आशिक-
जिंदगी के खेल में कभी
कोई फेल नहीं होता
जब तक की वह
मैदान 🚵 नहीं छोड़ता
यहाँ न विकेट है न आउट होने का भय
मेहनत की बैट घुमाते रहना पिच पर
लगी तो गेंद मैदान से सीधा बाहर
वरना खिलाड़ी - खेल अभी जारी है पिच पर।-
जिंदगी के सारे मायने खुद-ब-खुद
बदल जाते हैं जब वक्त बदलता है
इंसानी फ़ितरत बदल जाती है।
सब समय समय की बात है
कठिन वक्त में 'अनुभव और
अच्छे वक्त में 'रिश्ते' बढ़ जाते हैं।
पर ऐ जिंदगी कभी मायूस न होना
समय का भी एक फितरत है
वह हर किसी का वक्त बदलता है।।
मो० आशिक-
तुम्हें सोचु और मेरे मन में
एक चांद निकल आता है।
आसमा में तुम्हे निहारू और
सवेरा चला आता है।
लम्हों के रेत पर तुम्हारी तस्वीर बनाऊ और
लबों पर लहरों की मुस्कान भिगो जाती है।
तुम्हें ढूढने यादों के समुद्र में देखु और
लहरों के तरंगो पर तुम्हारा
मुस्कुराता चेहरा बन आता है।।
-
जब जब बहुत निराश होता हूँ
तुम्हारी (कविता) शरण में
चला आता हूँ।
तुम तीव्र ज्योति हो कविता में
मैं जीवन का घोर तिमिर हूँ।
हर बार
तुम देकर रौशनी राहों में
कहाँ गुम हो जाते हो।
कभी कभी सोचता हूँ
बाहर कविता में हो तुम या
मेरे ही भीतर अंधकार में बैठे हो।।
- 'मो० आशिक'-
'आज किसी से बात करके'
बहुत संभाल कर रखे जाते हैं
रिश्तों के अहम काग़ज़ात
जरुरत मुलाकात तक सीमित नहीं
त्याग समर्पण से जीता जाता है विश्वास।
इतना आसान नहीं कहना कहलाना
किसी के 'सच्चे जिगरी दोस्त यार'
आसमा शोहरत के 'सितारें' जमी पे
रात भर चलते हैं 'जुगनू' संग
बन कर ज्योति राह के प्रकाश।।
- 'मो० आशिक'
-
जब कभी आँखें नम हो आती हैं,
लफ्जों से मौन कविता में मुस्कुरा लेता हूँ।-
'इंसाफ़'
शांति कौन नहीं चाहता?
वफात की नमाज किसे पसंद है?
रक्त रंजित काव्य रच कर
आनंद रस किसे मिला है?
लेकिन, लेकिन, लेकिन
जब तोड़ कर सारे अमन मर्यादा
दखल कर बैठे घड़ों में शत्रुओं का दल
बैठे अमन का 'गीता' -'कुरान' पढ़ कर क्या होगा?
'गीता का कर्म', कुरान का अमन'
सीखलाता नहीं करे अधर्म से समझौता।
हमने तो कभी युद्ध चाहा नहीं
कभी किसी का कुछ छीना नहीं
अन्याय का दामन थामा नहीं
अधर्म की राह पर चले नहीं,
फिर फिर...
अपनी ही जमी पर शहादत क्यों?
अपने ही हक के लिए सुलह क्यों?
क्यों क्यों क्यों किसलिए फिर से करे संधि?
मुल्क ए अज़ीज़ हुक्मरान!
वतन पुछता है मात्रभूमि के कुर्बान
सपूतों के इंसाफ़ कहाँ है?
इंच-इंच हक की भूमि
ज़मी मांगती है, हिसाब कहाँ है?
वज़ीर-ए-आज़म!
देश नहीं चाहता युद्ध न सुलह
देश मांगता है इंसाफ़, इंतक़ाम।।
- 'मो० आशिक'-