Mayuri Shah   (Mayuri Shah)
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Joined 17 June 2020


Joined 17 June 2020
11 APR AT 20:24

दिल की बातें....हमने, दिल में ही दबा रक्खी है,
अपने हर मर्ज़ की.... सिर्फ़ एक ही दवा रक्खी है,
नज़र-ए-करम हो तो कुछ शिफ़ा मिले मरीज़ को
बढ़ती झुर्रियों में भी आरजू-ए-दिल जवां रक्खी है!!

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27 MAR AT 11:56

खुशनुमा सुबह और सुकून भरी रात के लिए,
ख़ुद से ख़ुद की एक हसीन मुलाक़ात के लिए,
क़दम से क़दम मिलाकर, बढ़ती रफ़्तार थामने,
चल पड़ी है ज़िंदगी एक नई शुरुआत के लिए!!

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24 MAR AT 20:59

राग-द्वेष, मद-मोह, मत्सर का हो दहन,
तनिक तुम रूक कर विचार करो गहन
रंग खेलों किंतु न रंग बदलो, ध्यान रहे,
करो वही व्यवहार जो तुम्हें हो सहन !!

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19 MAR AT 15:07

एक स्त्री के नज़रिए से देखो
तो ये पूरी दुनिया चौकोर है....
जहाँ एक कोने पर वो ख़ुद
दुसरे कोने पर रसोई,
तीसरे कोने पर बिस्तर,
चौथे कोने पर ऑफिस,
और बीच में सारे रिश्ते नाते !!
एक कोने पर बैठ कर वो
बाकी कोनों को सँवारती,
उसकी नज़र से देखो तो
वो कैसे ख़ुद को निखारती !!

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18 MAR AT 13:54

एहसास लबों पर लिए
आँखों के ये पैमाने
अब छलकने को है,

बिन बोले समझ जाओ,
ये दिल आख़री बार
धड़कने को है !!

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18 MAR AT 13:36

रोशन रही
शब-भर
चाहतों की शमा
कुछ इस तरह,

कि, अब
हर सहर मेरी
शब-ए-इंतिज़ार में
कटती है....

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14 MAR AT 20:57

एक दूसरे को
भली-भाँति जानकर
अपरिचित हो जाना,

कदाचित्....
यह भी प्रेम का
एक पड़ाव ही होगा !!

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14 MAR AT 14:41

तेरी ये सादगी ही तेरा ज़ेवर है, जिससे तेरी रूह सँवरती है,
पहनकर इस ज़ेवर को,बिन गजरे-कजरे ही तू निखरती है!!

दो पल की है जिस्म की खुबसूरती, एक दिन ढल जाएगी,
सच तो ये तेरे क़िरदार की ख़ुशबू ही जहाँ में बिखरती है !!

बिन सादगी श्रृंगार फ़िका, और फ़िका बनावटी दिखावापन,
सादगी की ये पहचान कि भीड़ में अलग तस्वीर उभरती है !!

सरलता से संभलते रिश्ते, खुशियाँ आँचल में भर जाती है,
तभी तो ये सादगी ही मुस्कान बन कर लबों पर ठहरती है !!

बेकार ही है इस जिस्म की खुबसूरती को यूँ तवज्जो देना,
जब सादगी के ज़ेवर को ही दुनिया दिल से पसंद करती है !!

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11 MAR AT 10:41

झुका के नज़रे तेरे इश्क़ को नज़र लगने से बचाया है,
तुम सब कुछ हो मेरे, बिन कहे ही ये सबको बताया है,
कि, जानलेवा लगने लगी है हमारी मुस्कुराहट अब तो,
लगता है ख़ामखाँ ही रोग इश्क़ का हमने लगाया है !!

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11 MAR AT 10:21

वक्त की इन बेड़ियों में जकड़ें हुए कुछ अरमान है,
उड़ना चाहे लाख, ये चुप्पी जैसे कोई फ़रमान है !!
कट चुकी है आधी, अब आधी बाक़ी रही है ज़िंदगी,
दिल के दरीचों से जो झाँकें वहीं ठहरा बेईमान है!!

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