𝕄𝕒𝕪𝕦𝕣 𝕂𝕙𝕒𝕣𝕒𝕥   (Mayur kharat)
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Joined 5 January 2019


Joined 5 January 2019

बेगैरती और बेवफाई का चलन है
सदियों पुराना ये कोई बिद्दत नहीं है

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સંબંધો જાળવવામાં પણ
થવા લાગી છે કરકસર
લાગે છે કે આજકાલ
લાગણીઓ ઉપર પણ
થવા લાગી છે બુરાઇની અસર

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કંઇક સમજાય તે પહેલાં તો કોણ જાણે
ક્યાં સમાઇ ગઇ
ઘડીકજ વારમાં ક્યાં સંતાઇ ગઇ
લગીર યાદ આવી તમારી
અને પાંપણો ભીંજાઈ ગઇ

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आली आषाढी एकादशी आली
आतुरता प्रत्येक मनात वाढली
तळमळला जीव तुझ्या दर्शनासाठी
वारकऱ्यांची गर्दी पंढरीत उभारली

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दौलत है तो शोहरत
अपने-आप मिल जाती है
दौलत से किरदार पे लगी
हर किस्म की कालिख धूल जाती है
जेब में गर दौलत हो तो
दुनिया सारे ऐब भूल जाती है

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बाप्पा तुझ्या येण्याची चाहूल निसर्गालाही देखील लागली
सर पावसाची शुरु होता हीरवळ धरा वर उभारली
धीर सुटू लागला हळूहळू उत्सुकता वेगाने वाढली
येईल सण सुखाचा आशा ही प्रत्येकाचा मनात जागली

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चाहूं तो मैं भूला भी दू तुझे
मगर अफ़सोस मुहब्बत में
एसी कोई रवायत नहीं है

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आंखों में उम्मीद और दिल में सुरुर था
मुसाफ़िर थें वो किसी का क्या कसूर था
कोई था किसी की आंखों का तारा
कोई तो था बुढ़े मां बाप का लोता सहारा
उन नन्हे मासूमों ने किसी का क्या था बिगाड़ा
समझ में नहीं आता नियती को ये सब कैसे मंजूर था

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जहां जहां ग़ालिब है इस्लाम
वहा वहां वाजिब है होना कत्लेआम
काफ़िर जहां दिखे उसे मारो
बना लो उन्हें अपनी लोंडी या गुलाम
आज से नहीं यह सदीयो से
बस देता है यही पैगाम
ये कैसा ख़ुदा है और कैसा है उसका कलाम
कट्टर हो ही जाता है
शिद्दत से इसे मानने वाला
आदमी वह भले ही हो कितना भी आम

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बेकरारी में करार कैसे से लाऊ
बार-बार रुठे कोई तो कैसे मनाऊ

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