तब के राम हो या अब के राम
तब मन के भीतर रहते राम अब केवल मंदिर में राम
तब थे नीति भक्ति के राम अब केवल शक्ति के राम
तब कण कण में बसते थे राम अब झंडो पे छपते है राम
तब के राम हो या अब के राम शेष रह गया एक ही नाम
जय श्री राम - जय श्री राम !
तब थे त्याग तपस्या के राम अब केवल मनोरथ के राम
तब राम की प्रजा और प्रजा के राम अब रह गए सत्ता के राम
तब दशरथ नन्दन वनवासी राम अब जग में खोजो न मिलेंगे राम
तब के राम हो या अब के राम शेष रह गया एक ही नाम
जय श्री राम - जय श्री राम !
तब थे भरत , केवट , शबरी के राम अब ना मिलते रिश्तो में राम
तब हनुमत भक्ति से आनंदित राम अब ना मिलती भक्ति तो कैसे मिलेंगे राम
तब थे मर्यादित सियापति राम अब केवल कथाओ के राम
तब रावण के साहंवारक राम अब मन में बैठा रावण और मंदिर में बैठे राम
तब के राम हो या अब के राम शेष रह गया एक ही नाम
जय श्री राम - जय श्री राम !-
महंगे है रास्ते छोटे से ख्वाबो के
ख्वाबो की कीमत महँगी थी खुशियों से
खुशियों को बेचा हमने सस्ते से दामों में
कुछ फुर्सते बाकि है बिकना
खरीद लो वर्ना बिक जाएगी वो भी ज़माने में
आता कल ना निकल जाये अधूरे से ख्वाबो में
बीती राते महँगी थी खुशिया भुनाने में
आज कुछ फुर्सते है सफरनामे में
खरीद लो अगर मिल जाये हज़ारो में
पूछो ज़माने से समय मिला क्या कही
वो टूटा ही नहीं , गिरा ही नहीं तो मिला ही नहीं
ज़िन्दगी ना निकल जाये समय को आजमाने में
खरीद लो फुर्सते, इन्हे महंगे रास्तो और ख्वाबो की जरुरत नहीं
मिल जाएगी तुम्हे अपने ही मकानों में !-
मस्तक मोहे चन्द्रमा जिसके , मुख पे चमकता तेज है
जटा में बहती गंगा उसके फिर भी साधु सहेज है
तीन लोक का राजा है वो ओढ़ता सिर्फ खाल है
भस्म की पोशाक पहनता कहते उसे महाकाल है
ना आदि है ना अंत है
ना सीमा है ना छोर है
शिवरात्रि है आज पहुचादो कैलाश हमें
जहा बम बम भोले का ही शोर है-
आज मौन क्यों खड़ा है बेड़ियों में क्यों जड़ा है
श्वेत रक्त को भी अब लाल कर
अब शकुनि के तमस को दुर्योधन की वो हवस को
वासुदेव की जिव्हा से प्रहार कर
अश्वमेध है ये अब राम की परीक्षा का जो काल है
समाज की विडम्बना से उठ रहे व्यर्थ कुछ सवाल है
धरा की पुत्री को अब धरा न बुलाएगी
मुर्ख प्रजा ही इस धरा में समाएगी
ले मशाल और निकल बेड़ियों को तोड़कर
कैद ख्वाईशो को आज़ाद कर
कर्म शक्ति है ये तू मान ले
तू विजय है यह विश्व को प्रमाण दे-
Sutta agar jeevan hai to meri jeevan sathi ho tum
Frustration aur stress ki dushman ho tum
Nayi zindagi me purani yado ka swad ho tum
Kisi ki madhushala
Kisi ki raswanti
Kisi ka somrus ho tum
To kahi tapri par bikta amrut ho tum
Ek ahssas ho tum meri chai ho tum.
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Virus wali zindagi me meri vaccine ho tum
Monday ki lazy morning se lekar Friday night tak ka nasha ho tum
Weekend ki rato me dooba pyar ho tum
Beere aur whiskey ki baap ho tum
Ek ahsaas ho tum , meri chai ho tum-
अरे भैया एक कहानी हमसे भी सुन लो
मक़बूल ज़िंदगी है जरा कुछ शोहरत हासिल तो कर लो
ज़िंदगी का किस्सा तो भैया हम बता रहे है अब अगला कारवां खुद ही चुन लो
दुनिया ब्लैकमेल तो करेगी तब बन्दर नहीं मदारी खुद में ढूंढ लो
हिंदी मेडियम वालो किस्मत तुम्हारी है
लाइफ इन मेट्रो में एक पान सिंह तोमर तुम भी बन लो
अंग्रेजी मेडियम तो दिखावा है
चंद्रकांता ने भी तो स्पॉइडर मैन बन के दिखाया है
ज़िंदगी में रोग ने तो हमे भी बहुत सताया है
फिर भी लाइफ ऑफ़ पाई की तरह जी के दिखाया है
कहानी हमारी है भैया ध्यान से सुन लो और सफर ज़िंदगी का खुद ही चुन लो
जज्बा तो बहुत था जीने का पर खुदा ने लम्हे कम कर दिए
और ज़िंदगी के आखरी सफर में हम क़रीब करीब सिंगल ही चल दिए
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पवन सा वेग है मुझमे , सूर्य सा तेज है मुझमे
गंगा की धारा है मुझमे , तारे सी आभा है मुझमे
बदल रहे जीवन की आज में सच्चाई यह कहता हु
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अदृश्य शत्रु जो अब आ गया लड़ने
खा कर कसम इस मिट्टी की में उसे हुंकार देता हु
में भारत का सैनिक हु घर पर रहता हु
अस्पतालों में रहकर जो हमारी जान बचाते है
वो स्वास्थ्यकर्मी को में राम अवतार कहता हु
खाकी ओढ़ निकले जो देश बचाने को
उन्हें पहरेदार नहीं परशुराम कहता हु
देवो का अवतार कहता हु
में भारत का सैनिक हु घर पर रहता हु
घर की चार दीवारों को अपना परिवार कहता हु
घर के आँगन को अपना संसार कहता हु
अदृश्य शत्रु पर अदृश्य प्रहार करता हु
में भारत का सैनिक हु घर पर रहता हु-
ज़िंदगी ना अब अकेली , बुझ गयी है सब पहेली
जो मिल गयी है तू मुझे यहाँ
दिल ने खोजा कैसे तुझको , प्यार हुआ है फिर से मुझको
फिर हसीं लग रहा यह जहा
दिल ने मुझसे पूछा ऐसे , खुश तो हो तुम पहले जैसे
चल दिए हो हो फिर से तुम कहा
कह रहा था दिल में तुझसे , पूछ ना तू अब मुझसे किस्से
चल दिए है हम फिर से उस जगह
बज रही है दिल में गिटार सोच लू में फिर से एक बार
क्यू फिर से जाऊ में वहा-
रंग और स्याही को दावते भेजी थी
कहानी ज़िंदगी की थी तो कलम अकेले चली आयी-