Mayank Tripathi   (Mayank)
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Joined 16 May 2018


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17 FEB 2019 AT 13:34

भीड़ मे चलते हुए भी
भीड़ की शक्ल ना बनने की कसक
होती है प्रबल
हर एक उस इंसान मे
जो यह जानता है
कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
और यह कि
भीड़ चलती है
भेड़चाल की माफिक
गली गली, पीछे पीछे
दिल से सुस्त, दिमाग से परे
बिल्कुल वैसे
जैसे दूर बजती बासुरी की मनमोहक धुन
चूहो की फौज़ को खीच लाती है
पानी की तरफ
जहां लिखी होती है
सिर्फ मौत
ऐसी भीड़ नहीं बनना मुझको
जीते जी नहीं मरना मुझको

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30 JAN 2019 AT 21:01

"खाली हाथ शाम आई है, खाली हाथ जाएगी. आज भी ना आया कोई, खाली लौट जाएगी" - इजाजत फ़िल्म का ये गीत कितना वास्तविक जान पड़ता है, जब जब एक शाम यूँ ही गुज़र जाती है, जैसे किसी के इंतज़ार करते हो.

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11 SEP 2018 AT 0:04

एक तमाशा जारी है
दिनचर्या के भेष में
अजीविका के पर्दे पर
बिन पगार का तमाशा

दिल करता है नायक बन जाऊं
कुछ ऐसा कर जाऊँ तमाशे में
कि खतम होने पर तालियों की गूंज
मुझे अमर कर जाए, हमेशा के लिए

फिर यूं भी लगता है कभी
कि धीरे से आऊँ, बिन किसी आहट
बस अपना किरदार निभा जाऊँ
ईमानदारी - इंसाफ से मसरूफ़

शायद एक तमाशे की सफलता
किसी नायक या नेता से नहीं
तय उनसे होती है जो अपना किरदार
पूरा इंसाफ से कर जाते है
बगैर तालियों की चाह में
अमर-अविनाशी बनने की इच्छा से परे!

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11 AUG 2018 AT 19:35

People's reaction when Suhana khan says she has
faced lots of struggle as star kid

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11 JUL 2018 AT 13:47

Train and life - An analogy. Read caption.

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23 JUN 2018 AT 0:49

ये रात तो वही आम है
पर आज कुछ बेचैनी है
करवटों में कशमकश है
और पलके झुकने को राज़ी नहीं

चाहिए एकचित मन, मगर कैसे?
जब भटके किसी की याद में
किसी के इंतज़ार में
आगमान जिसका परम संशय


नींद और पलकों के बीच की दूरी
किसे ही होती गंवारा
आ जाओ सपनों में ही सही
ये रात बहुत लंबी है यारा!

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21 JUN 2018 AT 10:31

Video lectures,
Fat books,
distinguished professors




Friend's last minute
capsule course
before exam

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20 JUN 2018 AT 14:20

crowd that has no familiar faces.

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11 JUN 2018 AT 0:33

रेल सी सरपट जिन्दगी
तैरते सपनों का धीरे से डूबना
या उम्रदरज होती चंद उम्मीदें
और आशाओं पर पड़ती सिल्वटे

क्या चेहरा, क्या पर्दा
मंजर बदलना तय है
आज की रेत पर कल की लहर
और गुजरे अतीत का पत्ता साफ

ठहाराव कहा, किधर जाए?
जब भँवर में हो कश्ती
करें ख़ुद से मुलाकात
अंतरत्मा के आईने से

अक्स में दिखती शर्मिंदगी
या गर्वित शोभित क्षण
कुछ सुधार की गुंजाइशें
या हाथ मलते पछतावे

अन्त: मन की इतनी गुजारिश
कल से हो आज बेहतर
कोशिश ये बस जारी रख
आईने से यारी रख

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9 JUN 2018 AT 13:36

आपका तीर-ए-नज़र दरअसल आम नहीं
हया और शोखी़यों से लबरेज़ है
खून का एक कतरा नहीं जनाब
पर दर्द बेइंतहा कर जाता है

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