नहीं चाहिए ज़िंदगी से कोई इंकलाब,
बस कोई इतना सा दे दो जवाब...
की सिरहाने किताब रखूं,
या कोई ख्वाब...-
Facebook Page: https://www.facebook.com/Shuklaji2013
Follow me on ins... read more
हाल ए दिल बतलाऊं या,
कोई अखबार पढ़कर सुनाऊं।
दोनो में किस्से बड़े गहरे हैं,
किसी में सच्चे तो किसी में झूठे चेहरे हैं।।
-
तेरी एक हंसी पर संवरे,
तेरे रूठने से रूक जाए ये दिन।
अब सोच भी नही सकता,
ये जिंदगी तुम बिन।।-
अब जो बरस रहा है,
उसमे शोर है पर सुकून भी है।
लगता है मौसम ऐ दस्तरख्वां में
में अब सजा मानसून भी है ।।-
कोरा पड़ा है कागज और कलम मदहोशी में,
अब कैसे कह दूं कोई हर्फ, इस खामोशी में।।-
अभी तो धीमी सी एक शुरुआत है,
ये कहानी तो बहुत बड़ी है।
रफ्तार में है जमाना आजकल,
पर जमाने की किसको पड़ी है।।-
ना जाने इस सफर पर,
वक़्त क्यूं बेईमान हो रहा है।
की मंजिल दूर और,
रास्ता आसमान हो रहा है।।-
मिट्ठू को कैद करना, इंसान का काम था।
बेवजह किताबों में पिंजरा बदनाम था।।-
तेवर बदलने लगे है मिज़ाजो के,
कश्तियां छोड़ लोग सवार है जहाजो पे।
लगता है कोहरा कम नहीं हुआ शहर से,
क्योंकि सज नहीं रही धूप दराजो पे।।-
इक्कट्ठी हुई है भीड़,
जरूर कुछ तो बवाल है।
कुर्सी पर हैं जो शायद,
उनसे पूछा गया सवाल है।।-