जहाँ नज़रें कभी टकराई थी आज मुलाक़ात वहीं होनी थी ।।
बातों का सिलसिला फिर काफ़ी लंबा चला ।।
शाम मिले, अब रात होने को आई थी ।।
सब कह डाला उस दिन उन्होंने मुझे ।।
हम भी कहाँ चुप रहने वाले थे फिर ।।
रख दिया दिल उनके सामने निचोड़ के फिर हमने ।।
फिर आख़िर हमने थार थराते लबों से पूछा ‘अब आगे’ ।।
जब जवाब पता हो तब सवाल नहीं पूछते कहा उन्होंने ।।
आगे फिर क्या कहते वो, झुकी नज़रें ही गवाह बनी फिर ।।
जंगह वहीं , ढलती शाम वहीं, और में और वो अजनबी वहीं ।।
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● Accidental writer and speaker.
○ Follow for original & in... read more
Independent women are not anti-social...
They simply don't want anyone to dictate...
Over their choices....
Over their interests...
& Over their life ....
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वो खाब्ब था या चाहत थी।
वो चाहत थी या खाब्ब था।।
किसी ने यूं कहा था मुझसे।
के चाहत छूटती नहीं कभी।।
अब कैसे समझाऊं में उसे।
क्या कहूं में उस से अब।।
के वो तो चली गई है दूर।
कोई तो अब मुझे बता दे।।
वो खाब्ब था या चाहत थी।
वो चाहत थी या खाब्ब था।।
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बातें बहुत हैं मेरे पास।
किसी दिन पास तो बैठो।।
किस्से बहुत हैं जवानी के।
कभी मेरे साथ तो बैठो।।
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यूँ प्याज़ लगा कर रोना।
कोई बड़ी बात तो नही है।।
में कुछ बातों कहूं और वो तेरे दिल को छु जाए।
कोई बड़ी बात तो नही है।।
तेरा काम निकल जाना और मेरा अंजान हो जाना।
कोई बड़ी बात तो नही है।।
यूँ तेरा मेरे दिल तक जाना और में तुझे पसंद ना आना।
कोई बड़ी बात तो नही है।।
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जो एक बार कह दिया हमने,
उसे थूक कर चाटेंगे नहीं।
तूने एक बार जो ठोकर मार दी,
उठ कर तेरी तरफ देखेंगे नहीं।
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Being a judge of oneself is far better
than being a judge to someone else.
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