Mayank Pratap Shahi   (मयंक..✍)
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पेशे से इंजीनियर हूं.... और दिल से आम आदमी...😊
On instagram- @thelonewolf1698
Joined 7 December 2018


पेशे से इंजीनियर हूं.... और दिल से आम आदमी...😊
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Joined 7 December 2018
17 APR 2021 AT 1:10

मौत सा पसरा सन्नाटा
जिंदगी से बढ़ती दूरियां
लगता है फिर से
कोरोना मिज़ाज बदलकर आया है
श्मशानों में सुलगती भट्टीयां
सरकारों की बेपरवाहीयां
एकमत होता रूदन का सुर
लोकतंत्र की दुहाईयां
लगता है इस बार
कोरोना राजनीति की शक्ल में आया है

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2 JAN 2021 AT 22:15


कुछ उलझी सी,
कुछ सलझी सी,
कुछ कड़वी भी
कुछ मीठी भी
कुछ धुंध भरे बादलों सी,
कुछ आंखों में जमें काजलों सी
कुछ मन को भा जाने वाली
कुछ सब कुछ खा जाने वाली
कुछ लम्बी चौड़ी मुस्कान लिए,
कुछ पीड़ा की चट्टान लिए
इन यादों का शोर
हमें जीने नहीं देता

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1 JAN 2021 AT 18:17

सुबह-सुबह चमेली के फूलों की सुगंध
ओस की चादर ओढ़े पेड़
पूरे दिन उस हल्की सी धूप में बैठे-बैठे
शाम को चाय के साथ मिलने वाले
नाश्ते का इंतजार
अलाव के आसपास बैठने की होड़
और फिर आंखों में आते धुयें से बचने की कोशिश
शाम ढलते ही किवाड़ का बन्द हो जाना
मानो ठंड का रास्ता रोक रहे हों
फिर रजाई में घुसने वाली हवा का
हर रास्ता बंद करना
ठंड से पसरा हुए एकांत
और उसको चीरती हुई रेलगाड़ी की सीटीयों की आवाज
और मानस पटल पर उभरा वह ख्याल

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29 DEC 2020 AT 1:42

वह अंधेरी रात,
और मन को आह्लादित करती हुई उसकी किलकारी
मानो सूनापन चला गया जिंदगी से
उसकी अठखेलियां को देखकर लगा,
जिंदगी न्योछावर कर दूं इसपर
एक रोज जब उसने एक बल्ला मांगा था
कैसे भटका था मैं, उसकी इस छोटी सी मांग पर
कैसे सिफारिशों से दाखिला दिलाया था
बड़े स्कूल में उसे
खुशीयों से भर गया था मन,
उसे सब कुछ पाता देखकर
लगा था सूकून का यह एहसास
पूरी जिंदगी के लिए आया है
फिर अचानक उस एक रात में
क्या बदल गया था?
वृद्ध आश्रम की सीढ़ियों पर बैठा वह सोच रहा था
इंतज़ार था क़दमों को उसकी आंखों से नम होने का

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27 DEC 2020 AT 2:49

आये थे कुछ पिंजरे के पंछी,
अपने सपनों का संसार लिए
आजाद हुए फिर पंख खुलें,
आसमान की चाह लिए
जब काम का बोझ बढ़ा सिर पर,
सब मिल बांट कर काम किये
फिर बात बढ़ी और यार बने,
जिंदगी भर के वादे बने
फिर बंधे किस्मत के फेरों में
न बिछड़ने की दिल में चाह लिए
फिर आ पड़ी सामने बिछड़न की बेला
गम के ओलों की बरसात लिए
आंखों से बहने लगे थे अश्रु
सब नाच रहे थे बेतरतीब
गम से दिल में इक आह लिए

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24 DEC 2020 AT 9:26

मासूमियत आंखों में थी,अल्हड़पन जुबां पर बसता था
ना होता था थकान का जिक्र,मन खुद ही हर्षित रहता था
वह आंगनबाड़ी का खाना, और जन-गण-मन का गाना
किताबों में उलटन-पलटन, और भैया-दीदी की उतरन
वह चेहरे भरी हुई मुस्कान, सभी रितियों से अंजान
वह दादी मां की कहानियां, या फिर चंपक वाली दुकान
वह किचड़ से सनी हुई मिट्टी,और दोस्तों से हुई कट्टी
जब बिखरे पड़े रहते थे बाल, और मीठे पान से होंठ लाल
तब गर्मी में था बुरा हाल, और कूलर करता था कमाल
अब सुख सुविधाएं सारी हैं, समाज का हूकूम बस चलता है
कितने भी पैसे ला दो तुम, बचपन नहीं अब सस्ता है

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14 DEC 2020 AT 0:34

हमारे सुकून की
बस इतनी सी दास्तां है
उनकी खुशियां और हमारा सुकून
दोनों साथ चलते हैं

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7 DEC 2020 AT 20:12

उसका लहज़ा तुझे नहीं भाता
उसका कहना हर पल तुझे खाता
उसकी आंखों में दिखती तुझे नफ़रत
उसके कामों में दिखती तुझे ज़िल्लत
पर सच है जो देखना चाहे तू
वही हर पल तुझे दिख जाता है
यह आयना है तेरी शख्सियत का
जिसे पहचान नहीं तू पाता है






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12 AUG 2020 AT 10:56

राम लला के भक्त यहां पर
राम के गीत ही गाते हैं
पर जब चौखट लांघी लड़की ने
मन में रावण क्यूं जग जाते हैं
चौखट को लांघते ही,
सीटियों से स्वागत क्यों होता है
तब अंदर बैठा वह
राम कहां पर सोता है
आजादी की चाह में बड़ी मुश्किल से
वह चौखट लांघी जाती है
पर सब आजादी की यह इच्छा,
रावण की नजरों से मर जाती हैं

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24 JUL 2020 AT 17:42

अदृश्यता की चादर ओढ़
तेरे साथ वो चली
देख न पाया तू उसको
जब थी वह सामने ही खड़ी
भेदभाव नहीं करती किसी से
न कोई रिश्ता नाता है
लिए जाती है साथ
समय जब पूरा हो जाता है
दुश्मन, मित्र, लाभ, हानि
सब कहने की बातें हैं
मृत्यु के पश्चात
कुछ न साथ ले जा पाते हैं

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