करते नही पर वफ़ा की बात करते हैं
सबब-ए-दर्द भी दवा की बात करते हैं
शब सी आँखें, चाँद चेहरा, शफ़क़ लब
पुराने रक़ीब आ उस बे-वफ़ा की बात करते हैं
उसकी खुशबू है उसमें उसने छुआ है उसको
उसके पास से गुज़री उस हवा की बात करते हैं
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फ्लाइंग किस
वक्त-ए-रुकसत उसने देखा था मुझे आँख भरके
और फिर रखकर अपनी हथेली पर
गुलाब की पंखुड़ियों के लाल साये
मेरी ओर उड़ा दिए
उसके लबों को वो सुर्ख खुशबू
जो उतरती नही मेरे गालों से
जब कभी बे-ख्याली में छूता हूं
वो खुशबू हाथों से
मेरी उंगलियों को उसके होंठों का
तसव्वुर होने लगता है।-
मौत -
जनवरी का सर्द महीना
बात करती हवाओं के मुँह से
निकलता कोरा कुहासा
मेज़ के कोने पर रखी
गर्म चाय से भरी सिफाल
और उस से उठती
सुफेद गुनगुनी साँसें
कुर्सी की एक बाज़ू पर कुहनी टेके
सियाही भरी सलाई से
नज़्म बुनता हुआ
एक शायर
उस नज़्म में
साँस भरते भरते
चाय की साँसें रुक गयी
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एक खूनी हूँ मैं
लफ़्ज़ों का नीला खून लगा है मेरे हाथों पर
कई नज़्में क़त्ल की है मैंने
बोहतों को ज़हन की कोख में भी मारा है
जब वो ख़याल की सीपी में क़ैद थी
कुछ नज़्में कुछ वक्त बाद मेरे मुताबिक़ नही रही
तो उन्हें स्याही तले दफ़न कर दिया
जो नज़्में आधी अधूरी अपाहिज़ थी
जो कामिल ना हो सकी मुझसे
उन्हें उसी कोरे कफ़न में मरोड़ कर फ़ेंका है
मैं ख़ूनी हूँ।
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हॉरक्रक्स - (वो चीज़ जिसमे आत्मा के टुकड़े छिपाए जाएं)
वो जिसका नाम नही लिया जा सकता
उसी की तरह मैंने भी
रूह के कई टुकड़े करके
नज़्मों में छिपा दिए हैं (नज़्म-कविता)
जैसे उसकी मौत तब हुई जब
उसकी नफ़्स के सातों पुर्ज़े ख़त्म हो गए (नफ़्स-आत्मा)
जब तक मेरी क़ल्ब की किरचें रहेंगी (क़ल्ब-आत्मा, किरचें-टुकड़े)
मेरी ये नज़्में ग़ज़लें रहेंगी
तब तक मैं मर नही सकता
हाँ मैं भी एक साहिर हूँ (साहिर-जादूगर)
और मेरी हर नज़्म हॉरक्रक्स है।-
चाँद का घर :-
धुली शाम की सुर्ख सुनहरी
और चाँद भी बस आने को है
गर चाँद आज आया
तो कहाँ बैठेगा थक कर
फ़लक की सीढ़ियां चढ़ते उतरते
किसकी बाँह पर रखके सिर
चंद कोरी साँसें भरेगा
टूटते झरते बर्ग नही हैं अब
किसकी नक़ल उतारेगा
और गिरेगा टूट कर
कि एक नई सुबह उठे
ज़र्द पत्तियों की जैसे
साखों से कूदा करता था
वो पका पीला चाँद
तो कभी लटक जाता था
शजर की दस्त थामे
झूले की तरह
डाल पर बनी
पत्तों की गट्ठरी पर
बैठ जाया करता था
कभी कभी टहनी पर
एक रात सी सियाह कोयल संग
गुफ़्तगू करते भी देखा है
उस कोकिल ने
एक नया बसेरा ढूंढ लिया है
ना जाने
अब चाँद का क्या होगा ?
उस दरख़्त को काटकर
ले गए हैं कुछ लोग
ज़मी पर घसीटते हुए।-
डिसएबिलिटी :-
एक ग़ज़ल लिखी है शायर ने
और मुकम्मल कर दी है /मुक़म्मल-पूरा
एक मतला है /मतला-ग़ज़ल का पहला शेर
एक मक़्ता है /मक़्ता-ग़ज़ल का आखिरी शेर
और मक़्ते में तखल्लुस भी /तखल्लुस-पैन नेम
वज़न-ए-अशआर भी ठीक ही है /वज़न-मीटर,आशआर-कपलेट्स
मगर ग़ज़ल के किसी शेर का
एक मिसरा बहर से खारिज़ है /मिसरा-एक लाइन
इसी तरह खुदा ने भी
कुछ ख़ास इंसानों को
बहर से खारिज़ लिक्खा है। /खारिज़-ग़लत-
अब दिल मे कोई आवाज़ नही
ये पत्थर है कोई साज़ नही
तुम दिल को ऐसे रौंद गए
मेरी हर धड़कन टूट गयी
सीने में अक्सर चभती है
अब इनका कोई इलाज नही
इस दिल मे कोई आवाज़ नही
ये पत्थर है कोई साज़ नही
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मेरी ग़ज़लों को किसी ने रात कह दिया
इस क़दर उनमे मुसलसल रहा है चाँद
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तुम :-
सारे सफ़हे पलते मैंने /सफ़हे-पन्ने
हर इक नज़्म टटोली थी /नज़्म-कविता
हर लफ्ज़ के होंठों से
खुशबू तुम्हारी बोली थी
जितनी रातें लिखी थी मैंने
सब में तुमको मेहताब लिखा /मेहताब-चाँद
नींदें भी मुझे नज़्म लगी
हर नज़्म में तुमको ख़्वाब लिखा।
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