खिड़कियों से,
अब ये जहां मुझे,
अच्छा नहीं लगता !
कोई कैद है मेरी आंखों में,
मुझे सोना अच्छा नहीं लगता !
सोचता हूँ निकल जाए,
कोई मेरी आंखों से आंसू..!
आंसुओं को अब पलकों वाला,
रास्ता अच्छा नहीं लगता !
कितने मीलों,
दूर आ गया तू बिन बोले 'मयंक
अब तो अपनों के साथ,
बोलना भी मुझे अच्छा नहीं लगता !
ग़फ़लत सी है ज़िस्म में,
कोई अजीब निशानी बता रही,
मुझे श्री गंगा के किनारे को,
छोड़कर कुछ अच्छा नहीं लगता !
जमाने भर की आवाज़ें आई,
मेरी भरी जवानी में,
मुझे तेरी नादानी के,
सिवाय कुछ अच्छा नहीं लगता !
मांग कर आया हूँ,
बहती माँ-गंगा के चरणों में बैठकर,
एक तेरी बेटी के साथ को,
छोड़कर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता !
कबूल कर लेना,
माँ गंगे मेरी कांपती हुई प्रार्थना,
अब हर बार आकर मांगू,
बेटी का हाथ माँ को भी अच्छा नहीं लगता !
-