सुकून की तलाश में हम बहुत दूर आ गए हैं
उसके लिए ही अपना बचपन छोड़ आये हैं,
अब पता चला है सुकूँ तो बचपन में ही था
ना जाने क्यूँ हम उसका गला वहीं घोंट आये हैं।-
B.Sc (Mathematics) Hons.
Started writing - 06 Nov 2017
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उफ्फ ये इंतेज़ार रात का
तेरे एक बात बताने का
और मुझे उस बात को सुन ने का
इन दोनों के होने के दरमियाँ का लम्हा
सदियों सा लगता है मुझे।
उस लम्हें में हुई बैचैनी
कि बात क्या होगी ?
जो, उसने, उस बात को,
बताने का एक समय तय कर दिया है
बहोत बेकार सा लगता है मुझे,
वो लम्हा सदियों सा लगता है मुझे।-
हो गयी बेइज़्ज़त इश्क़ मेरी भरी महफ़िल में
मेरे दर्द को समझ सके कोई, ऐसा कोई ना था,
दोस्त मानकर जो बयां किया हाल-ए-दिल अपना
अपना कंधा देता कोई मुझे, ऐसा कोई ना था।-
हुस्न के दीवानों से भरी पड़ी है दुनिया ज़नाब
कोई रूह से इश्क़ करने वाला हो तो मुझे बताना।-
ऐलान कर दो उसके शहर में की लौट के आया हूँ मैं
ज़रा देखूं तो मुझे देखने को वो बाहर निकलती है या नहीं।-
मन भर गया है ना अब तुम्हारा ? सच बताना
हो गया है ना किसी और से इश्क़ तुझे ? सच बताना।
तेरे बात करने के सलीके में अब वो बात ना रही
किसी और कि बातों में आ गयी हो क्या ? सच बताना।
कहती तो हो कि अब मुस्कुराते नहीं हो तुम
पर तेरी इन हँसी की वज़ह क्या है ? सच बताना।
आजकल तिल को ताड़ बनाने लगी हो तुम
किसी और के लिए ऐसा करती हो क्या ? सच बताना।
अब कहती हो कि वक़्त कम रहता है तुम्हारे पास
ऐसा उसे भी कहती हो क्या ? सच बताना।-
कुछ लोगों के लिए इश्क़ खिलवाड़ होता है
उन्हें तो ये एक बार नहीं बार बार होता है,
और फिर जब मन भर जाता है उनका, उनसे
तो कहती है, क्यूँ ऐसा मेरे साथ ही हर बार होता है।-
सुहानी रात थी
ठंडी हवाएं चल रही थी
रतचर ख़ामोश थे
और चुप्पी बात कर रही थी।
नींद आयी थी, पर,
उनकी यादों ने घेर रखा था
ख़्वाब जिनके देखें थे
उन्होंने ही मुँह मोड़ रखा था।
हम कटी पतंग की तरह
इधर से उधर उड़ें जा रहे थे
मांझा उनके ही हाथ था
और वो किसी और से नज़रें मिला रहे थे।-
हम अकेले चलते रहें और कारवां बनता गया
हमने नई राह चुनी और जमाना बदलता गया।
कुछ लोग आए नए सोच लेकर
और पुरानी सोच से माहौल बिगड़ता गया।
लाख ठोकर खाकर भी हम सम्भलते गए, और
कोई एक ठोकर खा कर भी, अपने नज़रों से गिरता गया।
रातों में सोते हैं, कल कुछ अच्छे की उम्मीद लेकर
कोई अपने हर एक पल को, ज़िंदादिली से जीता गया।
नामुरादों, बेवकूफ़ों से भरी पड़ी है दुनियां दोस्तों
कोई बेपरवाही से उनकी बातों को, नज़रअंदाज़ करता गया।
कोई लगाता रहा नारा राष्ट्रवादी का
और कोई चुपचाप से मुल्क पर जान लुटाता गया।-