mayank dak  
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Joined 15 January 2019


Joined 15 January 2019
30 DEC 2020 AT 19:36

ये कैसा रंग चढ़ा है आसमां की त्वचा पर,
इन्सान - इन्सान के समक्ष खड़ा है, पौरुष दिखाकर

ज़िन्दगी तू कैसा मोड़ लाती है,
ज़रा भी भविष्य पर गौर न फरमाती है!

शव अपना जले या औरो का,
इन्सानियत भूख से तिलमिलाती है,
बम घर पर गिरे या सरहद पर,
अमन का खून बरसाती है।

शोलो से शूल तक का सफर तय कर जाती है,
जिस्म की बली फिर जंग का पैगाम लाती है,
बदले की भावना फिर कत्लेआम का फरमान लाती है।

जंग तो खुद एक मसला है, क्या हल देगी,
लहू से लतपथ ये भूमि चीखती है,
बारूद से नहीं, शमा प्रेम से जलती है।

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27 DEC 2020 AT 1:17

मां
आंचल में गाठ बांध के दुआ बरसाती है,
छान के सच्चा प्यार रोटी खिलाती है,
दिये सी जलती है, रोशन मुझको कर जाती है,
स्वेत पड़ी मेरी अभिलाषाओं को रंगो से भर जाती है।
मगर फिर भी भोली ! ईश्वर को बड़ा बताती है।

सिसकियां वो मुझसे छिपाने को सो जाती है,
दर्द - ए - दिल कभी ज़ुबां पे नहीं लाती है,
पर मेरे अश्कों को देख खुदा से भी लड़ जाती है।
मगर फिर भी भोली ! ईश्वर को बड़ा बताती है।

ज़रा सी देर होने पर दरवाजे को ताकती है,
मुझे सुलाने तक बराबर जागती है,
अधूरी नींद संग फिर उठ जाती है।
मगर फिर भी भोली ! ईश्वर को बड़ा बताती है।

मेरी कामयाबी पर इठलाती है,
धूप में छांव ओर खुशी में रस बरसाती है,
मगर फिर भी भोली ! ईश्वर को बड़ा बताती है।

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22 DEC 2020 AT 11:27

खुली लटे, हवा संग सरसरा रही,
देख तुम्हे आंखें मेरी टिमटिमा रही,
चेहरा देख चांदनी भी शर्मा रही,
शाम सवेरे बस तेरा ही साथ दिखा रही,
अदाए तेरी दिल को बांध ले जा रही,
ज़िन्दगी क्या तू कोई ख्वाब दिखा रही?

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22 DEC 2020 AT 10:41

रंग पिया का ढूंढे से भी ना मिले,
दर्द हवा जो होठों पे सिले,
चंद्रमा की लाली पर सवरे,
काजल की कलम सा गुजरे,
दामन में कश्तियों संग चले,
सांसों में धड़कन सा गरजे,
आशियाना प्रेम से संवारे,
किस्मत बस उसी को पुकारे,
ये दिल बस उसी को पुकारे।।

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21 DEC 2020 AT 16:47

गालो पर हया, होठो पे जज़्बात लिए
मुझे देखने बस यूंही आती - जाती हो,
आंखे चार होते ही, खिलखिलाती हो
मुझे साथ में पा इतराती हो,
क्या जनता नहीं मै, कहने मे तुम शर्माती हो।।

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3 JUL 2020 AT 23:18

फिज़ा कि रात, अफसाना फिर एक छाया,
कस्तूरी कि महक ने, तुम्हारा अहसास कराया;
छूने को तुम्हे बेताब, दिल ये फिर गुनगुनाया;
देख तुम्हे, अश्कों का आलम लौट आया,
रूह की तड़पन ने, सांसों को थमाया,
बेबुनियाद अफसोस कि कथा, फिर मै गाया;
सैलाब जैसे कोई चांद पर छाया,
आइने से मै यू टकराया,
ओझल आंखों से जब तुम्हे पाया,
आंसुओं को मै न रोक पाया।

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1 JUL 2020 AT 20:23

हम मुसाफिर है,
मोड़ - मोड़ भटकते है,
मगर जब से तुम्हे देखा है,
इसी मोड़ को याद कर अटकते है।

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27 JUN 2020 AT 21:58

" गैर - गैर "करते - करते अपने छूट गए,
पाने को अपने; तड़पा तो कदम टूट गए,
रो - रो के अश्रु भी अब सुख गए,
रंग वफा के भी धूल हो गए,
वादे छोड़ो, साथ जीने - मरने वाले भी भूल गए।
कांटे देह पर नहीं, दिल पर चुभ गए,
मरहम बेअसर; दर्द अब नासूर हो गए।
चिल्ला - चिललाकर हम मुक गए,
पाने को अपने; तड़पा तो कदम भी ..........।।

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27 JUN 2020 AT 20:20

ये कैसी ज़िम्मेदारी है ,
खुद ना निभाओ तो होशियारी है,
हम चूक जाए तो डकैतों से साझेदारी है।
फुर्सत से भी नहीं हमारी यारी है,
चैन की ना कोई जीवन में हिस्सेदारी है।
दोष तुम्हारा हो, तब भी गलती हमारी है।
कहानियों की इतनी ही हिस्सेदारी है-
नियम हो, तो पैसा भारी है,
फिर भी दिल में रहती, भारत माता हमारी है।।

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22 JUN 2020 AT 11:37

ये आंखें ही सच्ची दोस्ती निभाती है,
गम हो या खुशी, आंसू सदा छलकाती है।

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