Mayank Choubey   (choubey factor)
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Instagram : choubey_factor
Joined 16 July 2019


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5 FEB 2022 AT 12:37

बस अब हो गया उधर
जो रह गया उसके लिए मिलते हैं

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23 JAN 2022 AT 13:30

सुबह को शाम लिख रहा हु
मेहनत को अब मै दाम लिख रहा हूं
दर्द को आराम लिख रहा हूं
खुद को वतन के नाम लिख रहा हूं

अगर खड़-खड़ा के खड़कती है बिजलियां
तो खुद को आसमान लिख रहा हूं
मिटा रहा हु अपने नाम का पीछे वाला नाम
न सिख न ईसाई न हिन्दू न मुसलमान....
की आज से अपना मजहब हिंदोस्तान लिख रहा हूं

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2 JAN 2022 AT 20:03

'वो मेरी है मैं उसका हु' ये बाते खूब चलती थीं
दो बातें हो जाए उससे तो राते खूब चलती थी
अभी मिला नहीं था मै अभी तो दूर जाना था
पर लेक्चर चलते हुए भी यारो
आंखों की मुलाकाते खूब चलती थी

बहुत दिन बीत गए मेरे वो नूरानी चेहरा नहीं देखा
दिलों की धड़कनों पे वो पुराना पहरा नहीं देखा
ज़िंदगी की गलियों में मैं...भागा खूब भागा रे!!
इतना भाग के भी अपने आप को इतना ठहरा नहीं देखा

चलो फिर स्कूल चलता हूं इस बार कुछ ले ही आऊंगा
बीता था जो लम्हा वो उसे भी साथ लाऊंगा
जो कैंपस में हुई थी बाते उसी को गीत बनाऊंगा
और गाऊंगा चीख चीख के की
"वो मेरी है...
"
और फिर भी न राते गुज़र पाए तो
अंधेरे में मैं दुनिया की गायब हो ही जाऊंगा....


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18 DEC 2021 AT 10:02

बन रही है करोड़ों की सड़के
मगर तेल बिन गाड़ी चलाए कैसे

इमारते भी प्रचलन में है
मगर रसोई में खाना पकाए कैसे

साहब ने सजाई है महफ़िके
मगर हम लाशे सजाए कैसे

सड़ रही है जवानी हमारी
घंटी तुम्हारी बजाए कैसे

ये सब सुन के भड़क पड़ा
खाकीधारी था जो वहा खड़ा
और झूठ में सच बोल पड़ा

साहब का विदेशी बाज़ार देखो
दोस्तो का बढ़ता कारोबार देखो
ये सुनहरे अखबार देखो
अच्छी खबरों का व्यापार देखो
बिका हुआ हवालदार देखो
नए मुल्क का खुमार देखो।।।।

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9 NOV 2021 AT 1:07

जाना कहा था कहा जा रहा हु ??
समाजिक तंजो में कसा जा रहा हु

सुहाने अपने सजाए थे मैने
सुना है सपने ही बस होते हैं सुहाने
हकीकत की दुनिया भूत ही अलग है

सोचा था लिख दू मोहब्बत की बाते पर बिन रोटी लिखके कैसे ही चलेगा
चाहु तो लिख दू उनपे दो चार नज़्में पर नज्मों से पेट कैसे ही भरेगा??

दुनिया की सलाहे सहा जा रहा हु
ज़बान पे पट्टी दिल में बेचैनी मैं इन तंग गलियों में चला जा रहा हु
जाना कहा था कहा जा रहा हु।।।

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11 OCT 2021 AT 0:54

नीले रंग पर भारी है पीला रंग
पीले रंग पर भारी है हरा रंग
हरे रंग पर भारी है काला रंग
काले रंग पर भारी है लाल रंग
पर तुम्हारे रंग पर कोई रंग भारी नहीं है!??

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3 OCT 2021 AT 0:20

निकला था दुनिया में निखरने...
आज ज़माने से अपने घर का पता पूछ रहा हूं
कत्ल करके खुद का दुनिया से अपनी खता पूछ रहा हूं

शुरुआती सफ़र बहुत था सुहाना जैसे हो कोई संगम का किनारा
थक गया अब मैं भीड़ बनके अपनी पुरानी अदा पूछ रहा हुं , जिंदगी की बदलती हवा पूछ रहा हूं

कत्ल करके खुद का दुनिया से अपनी खता पूछ रहा हूं।।

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26 SEP 2021 AT 22:57

लश्कर भी तुम्हरा है सरदार तुम्हारा है
तो तुम झूठ को सच लिखदो अखबार तुम्हारा है
और इस दौर के फरियादी जाए तो कहां जाए...
सरकार तुम्हारी है दरबार तुम्हरा है।।

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22 AUG 2021 AT 0:01

इस तरफ़ भगवा देखा उस तरफ देखा हरा
हर तरफ देखा मैने पर इंसान नही दिखा भला

धर्म ने आख़िर हमारी कॉम को क्या हीं दिया??
नेता को दी है कुर्सियां , अखबारों को अंधी सुर्खियां
अंजान चादर भेट की और खोखली मूर्तियां......
अमरीका बनना था बना पड़ा है सीरिया

खाने को रोटी है नहीं... बच्चा बिलख कर मर गया
इस सोमवार दूध दही माखन मधु नाली में जमकर सड़ गया...
मर रहा है एक समाज ठंडी में ठिठुर फुटपाथ पर
चादर चढ़ी है मखमली एक चौकोर काठ पर

मुल्क बांटा कम था क्या, बांटा है आज समाज को!!
ये क्या बनाएंगे सुनहरा कल?? जो बांट रहे हैं आज को...




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17 AUG 2021 AT 20:26

"जब सब कुछ धीरे-धीरे खराब हो जाता है तो वो एक 'नया अच्छा' बन जाता है"

ऊपर लिखे वाक्य को पढ़ कर लोग दो तरह से अपनी प्रतिक्रिया देंगे जो पाठक अजीब महसूस करेंगे वो यकीन मानिए हर दिन अपने आप को खोखले रिवाजों की जंजीरों में बांध चुके हैं... जब क्रूरता का विरोध होना शुरू हो जाता है तो उसका पालन कराने वाले लोग एक झूठ की तलाश में जुट जाते हैं एक ऐसा झूठ जिसका सच ढूंढना नामुमकिन हो, आज के ज़माने का वो झूठ मज़हब है।।


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