Maya— % & -
Maya— % &
-
कागज कलम के सँघतिया बना केहोठबा के सी रहल बानीमन होला कबो की मर जाइ ए करेजाना जी पाइ तोहरा बीन कबोआपन शायरी में तोहरा के शामील करकेखुदमें खुद से जी रहल बानी— % & -
कागज कलम के सँघतिया बना केहोठबा के सी रहल बानीमन होला कबो की मर जाइ ए करेजाना जी पाइ तोहरा बीन कबोआपन शायरी में तोहरा के शामील करकेखुदमें खुद से जी रहल बानी— % &
सरहद के उस पार अपना सा कोइ घर होता!!कुछ अजनबी सी खुशियां ,कुछ सना सा गम होता!!थोड़े पराए से अपने कुछ अपनों से पराए होता!जब अपना ना अपने हुए तो पराए क्या ही अपना होता!!— % & -
सरहद के उस पार अपना सा कोइ घर होता!!कुछ अजनबी सी खुशियां ,कुछ सना सा गम होता!!थोड़े पराए से अपने कुछ अपनों से पराए होता!जब अपना ना अपने हुए तो पराए क्या ही अपना होता!!— % &
कुछ नशा है तिरंगे का वे तिरंगे के लिए जीते हैं!वक्त आने पर अपने लहू से तिरंगे को सीचते हैं!!हम रहे स्वतंत्र रूप से हर वक्त यहां वहां या जहां!बर्फीली सर्द हो या गर्म झोंका की बहती हवा!!अपने वतन के खातिर अपनों से रहते दूर वहां!ताकी तिरंगे की बनी रहे हर वक्त शान यहाँ!!— % & -
कुछ नशा है तिरंगे का वे तिरंगे के लिए जीते हैं!वक्त आने पर अपने लहू से तिरंगे को सीचते हैं!!हम रहे स्वतंत्र रूप से हर वक्त यहां वहां या जहां!बर्फीली सर्द हो या गर्म झोंका की बहती हवा!!अपने वतन के खातिर अपनों से रहते दूर वहां!ताकी तिरंगे की बनी रहे हर वक्त शान यहाँ!!— % &
सर्कस दिखाने का हमें शौक नहीं साहब!बस गरीबी और भूख हमें जीने नहीं देती!!— % & -
सर्कस दिखाने का हमें शौक नहीं साहब!बस गरीबी और भूख हमें जीने नहीं देती!!— % &
Maya -
Maya
गरीब मजहब नही भुख जानता हैंजो भुख बुझाए, उसे रब मानता हैं -
गरीब मजहब नही भुख जानता हैंजो भुख बुझाए, उसे रब मानता हैं
यादों के सफर में मुसाफिर मैं बन बैठा"करीब था जो मेरा अपनो में सबसे अपना!!क्यु भरोसा करूं मैं अब किसी और पर..... जो था कभी अपना किसी ओर के बन बैठा!! -
यादों के सफर में मुसाफिर मैं बन बैठा"करीब था जो मेरा अपनो में सबसे अपना!!क्यु भरोसा करूं मैं अब किसी और पर..... जो था कभी अपना किसी ओर के बन बैठा!!