Maya— % &
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कागज कलम के सँघतिया बना के
होठबा के सी रहल बानी
मन होला कबो की मर जाइ ए करेजा
ना जी पाइ तोहरा बीन कबो
आपन शायरी में तोहरा के शामील करके
खुदमें खुद से जी रहल बानी
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सरहद के उस पार अपना सा कोइ घर होता!!
कुछ अजनबी सी खुशियां ,कुछ सना सा गम होता!!
थोड़े पराए से अपने कुछ अपनों से पराए होता!
जब अपना ना अपने हुए तो पराए क्या ही अपना होता!!— % &-
कुछ नशा है तिरंगे का वे तिरंगे के लिए जीते हैं!
वक्त आने पर अपने लहू से तिरंगे को सीचते हैं!!
हम रहे स्वतंत्र रूप से हर वक्त यहां वहां या जहां!
बर्फीली सर्द हो या गर्म झोंका की बहती हवा!!
अपने वतन के खातिर अपनों से रहते दूर वहां!
ताकी तिरंगे की बनी रहे हर वक्त शान यहाँ!!
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सर्कस दिखाने का हमें शौक नहीं साहब!
बस गरीबी और भूख हमें जीने नहीं देती!!— % &-
रोज जलती हूं थोड़ी-थोड़ी,पर राख नहीं होती
कुछ अधूरे ख्वाब है जो बुझने पर भी खाक नहीं होती-
कुछ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
विश्वास नहीं तो देखो
फल की आश में फुल को भी मरना पड़ता है-
यादों के सफर में मुसाफिर मैं बन बैठा"
करीब था जो मेरा अपनो में सबसे अपना!!
क्यु भरोसा करूं मैं अब किसी और पर.....
जो था कभी अपना किसी ओर के बन बैठा!!-