झील के किनारे टहलते हुए मैं मन ही मन "सोचों के झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..." गाना गुनगुनाए जा रहा था। शाम का वक़्त था और हल्की फुहारों वाली बारिश हो रही थी। ठंडी हवा चल रही थी और इन सबके बीच झील के किनारे बने रास्तों पर मैं चला जा रहा था। मन में कल्पनाओं के बादल घुमड़ रहे थे और कदम अपनी मदमस्त चाल में कई किलोमीटर का रास्ता तय कर चुकी थी पर फिर भी थकान का कोई एहसास ही नहीं था। मैं कल्पनाओं को अपने कांधे पर टांगे ठंडी हवाओं के थपेड़ों के बीच चला जा रहा था। पर मेरा मन झील के आस-पास कहीं रुक सा गया था।
एक सच्चाई ये भी है कि आप कितनी ही जल्दबाजी में हो पर खूबसूरत चीज़ें अक्सर आपके जीवन की गति को Slow कर देती है। शायद यही वजह है कि हम अपने फुरसत के पल झील, नदी और पहाड़ जैसे कुदरत के किसी खूबसूरत जगह पर enjoy करने जाते हैं। जहां से कुछ घंटों और दिनों में हम तो लौट आते हैं पर हमारा मन उस खूबसूरत जगह पर सालों तक अटका रहता है।
-