Mausam Jaiswal   (Mausam Jaiswal)
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Joined 21 January 2017


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Joined 21 January 2017
4 AUG 2022 AT 14:21

झील के किनारे टहलते हुए मैं मन ही मन "सोचों के झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..." गाना गुनगुनाए जा रहा था। शाम का वक़्त था और हल्की फुहारों वाली बारिश हो रही थी। ठंडी हवा चल रही थी और इन सबके बीच झील के किनारे बने रास्तों पर मैं चला जा रहा था। मन में कल्पनाओं के बादल घुमड़ रहे थे और कदम अपनी मदमस्त चाल में कई किलोमीटर का रास्ता तय कर चुकी थी पर फिर भी थकान का कोई एहसास ही नहीं था। मैं कल्पनाओं को अपने कांधे पर टांगे ठंडी हवाओं के थपेड़ों के बीच चला जा रहा था। पर मेरा मन झील के आस-पास कहीं रुक सा गया था।

एक सच्चाई ये भी है कि आप कितनी ही जल्दबाजी में हो पर खूबसूरत चीज़ें अक्सर आपके जीवन की गति को Slow कर देती है। शायद यही वजह है कि हम अपने फुरसत के पल झील, नदी और पहाड़ जैसे कुदरत के किसी खूबसूरत जगह पर enjoy करने जाते हैं। जहां से कुछ घंटों और दिनों में हम तो लौट आते हैं पर हमारा मन उस खूबसूरत जगह पर सालों तक अटका रहता है।

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26 OCT 2021 AT 17:39

हमें खुद से ज्यादा न किसी से सच बोलना चाहिए और न दूसरे से ज्यादा झूठ खुद से। क्योंकि आपसे बेहतर न आपको कभी कोई समझ सकता न ही आपसे बेहतर आपकी कोई मदद कर सकता है।

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9 OCT 2021 AT 17:29

ज़िंदगी में कुछ पाने या हासिल करने से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि इसके लिए आपने छोड़ा क्या-क्या है।

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7 OCT 2021 AT 14:05

विस्थापित तो सभी हैं इस दुनिया में

हम सब अपनी बेहतरी की तलाश में अपने-अपने हिस्से का विस्थापन लिए इस शहर से उस शहर भटकते रहते हैं।

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3 OCT 2021 AT 16:01

प्रेम की अनुभूति उसकी स्वीकृति तक ही होती है।
स्वीकृति होते ही प्रेम की जगह उम्मीदें और जिम्मेदारियाँ ले लिया करती हैं।

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1 SEP 2021 AT 15:23

कुछ सवाल इसलिए नहीं पूछे जाते की उनसे दुनिया बदल जाएगी या उनका जवाब मिलने से कुछ नया हो जाएगा।

कुछ सवाल बस ऐसे ही किसी अपने से पूछ लिए जाते हैं।

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11 AUG 2021 AT 12:45

आपकी ज़िंदगी में क्या और कैसे चल रहा है इस बात से अनजान
आपके फोन की गैलरी के किसी कोने में यादों की एक पोटली पड़ी रहती है।
जो खुद में समेटे रहते हैं अनगिनत खुशियों और सुकून के एक समंदर को।

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13 JUN 2021 AT 3:22

ख़बरों सी हो गयी है जिंदगी
जिसे देखो अख़बारों की तरह पढ़ता है, निकल जाता हैं।

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23 MAY 2021 AT 14:13

इस दुनिया को और हसीन होना था
हमारी इंसानियत को और अमीर होना था।

वो जो लड़ रहे हैं यहाँ बेमतलब
उनको थोड़ा और मुतमईन होना था।

किसी ने कहा और हम चल पड़े उसके पीछे
हमको खुद पर भी तो थोड़ा यकीन होना था।

ज़लज़ला फैला है हम सबकी ज़िंदगी में
किसी को तो हमारा हक़ीम होना था।

वो जितना मानते हैं उतनी बुरी नहीं ये दुनिया
बस हमारी सोच को थोड़ा और ज़हीन होना था।

इक अदद मर्ज़ से मुरझा सा गया ये मुल्क़
इसके खुशियों को और ताज़ातरीन होना था।

वो ख़ुदा नहीं है 'मौसम' जो आसमां में जा बसा है
वो भी मिट्टी का है, उसको इसी जमीं पर होना था।

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29 MAR 2021 AT 10:26

तुम्हारे हाथों की महक में सराबोर,
गुलाल के इंतज़ार में अब तलक सूखा हूँ।
हाँ मैं इंद्रधनुष में डुबकी लगाकर भी रंगों का भूखा हूँ।

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