ये कौन राह में बैठे है मुस्कराते है
मुसाफ़िरों को ग़लत रास्ता बताते है ।।-
कुछ समझ नहीं आता है
तेरा सही न जाने क्यों
मुझे गलत नजर आता है
बेवजह ही ये लडाई झगड़ा
क्यों लोगों को भाता है
जीवन मृत्यु का खेल ये सारा
कई सवाल मन में उठाता है ।।-
ये कैसा तेरा जाना है
मुझसे दूर जाकर भी मेरे पास ही चले आना है
बता......!!!!!!
ये बोझ तेरी यादों का
आख़िर कब तक मुझको उठाना है ।।-
बातों का सिलसिला भी अब रहा नहीं बाकी
न जाने हम दोनों में रह गया है क्या अब भी बाकी ।।
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रिश्ते होते नहीं धागे की तरह
इनकी तो रेत से रिश्तेदारी है
बंद मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह
इनकी तो आदत में बसी मनमानी है ।।-
ये जो बात-बात पर प्यार का दम भरते हो
सच कहो......मजाक करते हो न
ये जो हर बात में कसमें उठाते हो
सच्ची कहो.....मन बहलाते हो न??-
कहने को मैं दोस्त हूँ तेरी
दिया है हक......तुम्हें समझाने का
पर आँऊ जब भी समझाने कुछ
न जाने समझना फिर क्यों नहीं चाहते हो ??
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दिया है तुने साथ मेरा
हर कदम हर मोड़ पर
जब चाहू, जिधर भी चाहू
बस चल देती है साथ मेरे
बस अपना साथ बनाए रखना
मुझे दिल में अपने बसाये रखना
तुम्हारी
प्रिया 😇
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